Nastikta Se Mukti - Ulta Vishwas Seedha Kaise Karen

· WOW PUBLISHINGS PVT LTD
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ईश्वर का अस्तित्व कहें या इंसान का स्वभाव?

इस किताब का शीर्षक पढ़कर आपके मन में अनेक सवाल आ सकते हैं। निश्चिंत रहें, इस पुस्तक में इन सारे सवालों के जवाब आप सहजता से पा सकते हैं। इनके अतिरिक्त यह पुस्तक आपको नीचे दी गई निम्नलिखित जानकारी जानने में मददगार होगी :
- दुःख को स्वीकृति देकर हम ‘हाँ’ कहना कैसे सीखें?
- ‘नहीं’ या नास्तिकता को जीवन से कैसे दूर करें?
- आस्तिक एवं नास्तिक में क्या अंतर है?
- उलटा विश्वास या नास्तिकता से मुक्ति के सरल उपाय कौन से हैं?
- सीधा विश्वास या आस्तिकता के नए दृष्टिकोण से जीवन की ओर कैसे देखें?
- नहीं और हाँ से परे कौन सी अवस्था है और उसे कैसे पाया जा सकता है?

कई लोग अपनी गलतियों को नज़रअंदाज़ करके अपनी असफलता का इल्जाम ईश्वर पर लगाकर नास्तिक बन जाते हैं। लेकिन यह पुस्तक नास्तिकता और आस्तिकता की आपकी परिभाषा बदल देगी। नास्तिकता या आस्तिकता का संबंध ईश्वर के अस्तित्व से नहीं बल्कि इंसान के स्वभाव से जुड़ा है। इस किताब में आप जानेंगे कि किस तरह नास्तिकता इंसान के दुःखों का कारण बनती है और आस्तिक बनकर (हाँ कहकर) इंसान कैसे खुद अपनी खुशी का कारण बन सकता है।

Ratings and reviews

4.2
13 reviews
HARESH PAWAR
August 22, 2017
It is Very Wonderful book very helpful to live simple and happy life. Dhanyawad Sirshree
9 people found this review helpful
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About the author

सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।

उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।

सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’

सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अ‍ॅण्ड सन्स इत्यादि।

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