संग का रंग जीवन में निखार लाता है। इसलिए आप कौन से रंग में रंगना चाहते हैं, उस रंग से रंगे रंगारी से ज़रूर मिलें। सभी बंधनों से मुक्त होना चाहते हैं तो जो बंधनों से मुक्त है, उसकी शरण (संग-सत्संग) में जाएँ। यही है बंधनों से मुक्ति का सबसे आसान तरीका। यह तरीका गुरु ही शिष्य के लिए ईजाद कर सकते हैं।
इंसान चाहे तो गुरु के संग में रहकर अपने जीवन में आनंद के बीज भी बो सकता है या उनसे दूर रहकर काँटे भी उगा सकता है। चाहे तो इसी जीवन में नरक की यात्रा भी कर सकता है, चाहे तो स्व अर्क का आनंद भी भोग सकता है, दोनों दिशाएँ खुली हैं। मनुष्य अपना मित्र भी हो सकता है, तो अपना शत्रु भी हो सकता है। आपका शरीर हरि का द्वार भी बन सकता है और हरि से दूर भी कर सकता है। बहुत कम लोग हैं, जो इस कला को जानते हैं कि कैसे शरीर, हरि (ईश्वर तक पहुँचने) का साधन बने। इसके लिए आवश्यकता है बस उस द्वार से अंदर ले जानेवाले सच्चे गुरु के मार्गदर्शन की और उसे ग्रहण करनेवाले सच्चे शिष्य की।
गुरु, ईश्वर व आपके बीच पुल का काम करते हैं। गुरु का शरीर सत्य की याद दिलाने के लिए निमित्त है इसलिए उनके द्वारा सत्य में प्रवेश पाकर, सत्य में स्थापित होना चाहिए। इसके अलावा आप इस पुस्तक में पढ़ेंगे -
* बिना नाराज़ हुए राज़ जानने का मार्ग
* गुरुत्त्व और गुरु तत्त्व आकर्षण का रहस्य
* वृत्तियों से मुक्ति का ज्ञान
* जीवन के पाँच महत्वपूर्ण सबक
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।