दलित हिंदू ही हैं। ठीक वैसे ही जैसे भारत के पिछड़ा; आदि यानी सभी मध्यम जातियाँ हिंदू हैं और ठीक वैसे ही जैसे भारत की सभी सवर्ण जातियाँ हिंदू ही हैं। भारत के हिंदू समाज का अभिन्न हिस्सा हैं। वे किसी भी आधार पर हिंदू से अलग; पृथक् कुछ भी नहीं हैं; फिर वह आधार चाहे भारत के जीवन-दर्शन का हो; भारत की अपनी विचारधारा का हो या भारत के इतिहास का हो; भारत के समाज का हो; भारत की संपूर्ण संस्कृति का हो। इस समग्र विचार-प्रस्तुति का अध्ययन होना ही चाहिए। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के आह्वान का सम्मान करते हुए सारा भारत; जिसमें हमारे जैसे लिखने-पढ़ने वाले लोग भी यकीनन शामिल हैं; अब उस वर्ग को ‘दलित’ कहता है; जिसे वैदिक काल से ‘शूद्र’ कहा जाता रहा है। प्राचीन काल से शूद्र तिरस्कार के; उपेक्षा के या अवमानना के शिकार कभी नहीं रहे। हमारे द्वारा दिया जा रहा यह निष्कर्ष हमारी इसी पुस्तक में प्रस्तुत किए गए शोध और तज्जन्य विचारधारा पर आधारित है। इस विचारधारा को हमने अपनी ही पुस्तकों ‘भारतगाथा’ और ‘भारत की राजनीति का उत्तरायण’ में विस्तार से तर्क और प्रमाणों के साथ देश के सामने रख दिया है। दलितों का पूर्व नामधेय शूद्र था। जाहिर है कि इसका अर्थ खराब कर दिया गया। पर सभी शूद्र उसी वर्ण-व्यवस्था का; ‘चातुर्वर्ण्य’ का हिस्सा थे; जिस वर्ण-व्यवस्था का हिस्सा वे तमाम ऋषि; कवि; साहित्यकार; मंत्रकार; उपनिषद्कार; पुराणकार और लेखक थे; जिनमें स्त्री और पुरुष; सभी शामिल रहे; जिन्होंने वैदिक मंत्रों की रचना ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्र; सभी वर्णों के विचारवान् लोगों ने की; रामायण; महाभारत; पुराण जैसे कथा ग्रंथ लिखे; ब्राह्मण ग्रंथों; उपनिषद् साहित्य तथा समस्त निगम साहित्य की रचना की। ब्राह्मणों ने भी की और शूद्रों ने भी की। स्त्रियों ने की और पुरुषों ने भी की। सभी ने की।
दलितों के सम्मान और गरिमा की पुनर्स्थापना करने का पवित्र ध्येय लिये अत्यंत पठनीय समाजोपयोगी कृति।
भारत के हिंदू समाज में आए इन विविध परिवर्तनों और परिवर्तन ला सकनेवाले अभियानों-आंदोलनों के परिणामस्वरूप देश में जो नया वातावरण बना है; जो पुनर्जाग्रत समाज उभरकर सामने आया है; जो नया हिंदू समाज बना है; उस पृष्ठभूमि में; इस सर्वांगीण परिप्रेक्ष्य में हिंदू उठान और इसलिए पूरे भारत में आए दलित उठान; उसका मर्म और परिणाम समझ में आना कठिन नहीं। भारत चूँकि हिंदू राष्ट्र है; वह न तो इसलामी देश है और न ही क्रिश्चियन देश है; और भारत कभी इसलामी राष्ट्र या क्रिश्चियन राष्ट्र बन भी नहीं सकता; इसलिए भारत में दलित विमर्श; दलित समाज का स्वरूप और दलितों के उठान में इस अपने हिंदू समाज की; भारत के हिंदू राष्ट्र होने के सत्य की अवहेलना कर ही नहीं सकते। भारत का हिंदू आगे बढ़ेगा तो भारत का दलित भी आगे बढ़ेगा और भारत का दलित आगे बढ़ेगा; तो भारत का हिंदू भी आगे बढ़ेगा। उसे वैसा लक्ष्य पाने में भारत का हिंदू राष्ट्र होना ही अंततोगत्वा अपनी एक निर्णायक भूमिका निभाएगा। Bharat Ka Dalit-Vimarsh is a book authored by Suryakant Bali. This book focuses on the discourse and exploration of Dalit issues in India, shedding light on the challenges faced by the Dalit community and their struggle for equality.
Key Aspects of the Book "Bharat Ka Dalit-Vimarsh":
1. Dalit Discourse: The book delves into the discourse surrounding Dalit issues in India, highlighting their historical and contemporary struggles.
2. Social Justice: It explores themes related to social justice, caste discrimination, and efforts to address inequalities.
3. Advocacy: The content discusses advocacy, movements, and initiatives aimed at improving the socio-economic status of Dalits.
This book is authored by Suryakant Bali, an author dedicated to addressing and raising awareness about Dalit issues in India.