क्यों सब कुछ पाकर भी मन व्याकुल, असंतुष्ट, दुःखी रहता है?
इंसान कहीं किसी धोखे में तो नहीं जी रहा है?
आपके जीवन में असल में किसकी कहानी चल रही है और इस कहानी का असली विलेन कौन है?
स्वबोध पाने में कौन सी रुकावटें हैं?
स्वयं को भूलने का मूल कारण क्या है?
स्वबोध दर्शन हेतु शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक स्तर पर कैसी तैयारी हो?
मनुष्य की संपूर्ण संभावना खोलने और स्वयं का साक्षात्कार करने हेतु बस! ये सात सवाल भी काफी हैं। इनके जवाबों से आप केवल एक कदम दूरी पर हैं। जी हाँ! यह पुस्तक जो अभी आपके हाथ में है, इसे खोलें और सत्य का स्पर्श कर लें।
ऐसे में कोई कहेगा, ‘यह इतना आसान है क्या… मुझ पर पचास ज़िम्मेदारियाँ हैं… मेरी अनेक महत्वाकांक्षाएँ हैं… अभी मैं इस मार्ग पर कैसे चल सकता हूँ?’ तो यह बिलकुल ऐसे हुआ जैसे कोई आँखों पर पट्टी बाँधकर दिन-रात खूब मेहनत कर रहा है मगर कहीं पहुँच नहीं रहा है। कहने का अर्थ बिना सत्य जाने इंसान का कोई भी कार्य सही तरीके से पूर्ण नहीं हो सकता।
तो फिर क्यों न इस पथ पर चला जाए! यह पुस्तक आप तक ट्रैवल करके, आपके लिए पथ प्रदर्शक बनकर आई है तो तैयार हो जाइए, इसका स्वागत करने के लिए।