‘मन सभी प्रवृत्तियों का पुरोगामी है। मन उनका प्रधान है; वे मनोमय हैं। यदि कोई दोष-युक्त मन से बोलता है या कर्म करता है तो दुःख उसका अनुसरण वैसे ही करता है, जैसे गाड़ी का चक्का खींचनेवाले बैलों के पैर का।
बुद्ध ने कहा, “अब तू जा। अब तुझे जहाँ जाना है, तू जा। अब तुझे कोई गाली नहीं दे सकता। अब तुझे कोई मार नहीं सकता। अब तुझे कोई मार डाल नहीं सकता। ऐसा नहीं कि वे तुझे गाली न देंगे; गाली तो वे देंगे, लेकिन तुझे अब कोई गाली नहीं दे सकता। ऐसा नहीं कि वे तुझे मारेंगे नहीं; मारेंगे, लेकिन तुझे अब कोई मार नहीं सकता और कौन जाने, कोई तुझे मार भी डाले; लेकिन अब तू अमर है। अब तेरी मृत्यु संभव नहीं।”