कविता एक नदी है, जो अपनी उत्कृष्ट धारा लिए भी उछलते-कूदते, महासागर में मिलने नहीं, अपितु बन्ध्या-धरती की ओर मुड़ने को बेचैन रहती है। - जय प्रकाश गुप्ता ‘उन्मन’ को सृजित करने का उत्साह उठा तो कई बार, पर सोचता रहा जिस काव्य-जलधि में बड़े-बड़े बार्धक्य तक चल रहे, वहां मेरे जैसे डोंगी का क्या काम! फिर भी चलना था चल पड़ा । रचनापूर्व अपने गुरु प्रवर श्री राजबली उपाध्याय जी रमनीपुर, जौनपुर को नमन करूंगा । मेरे विद्यालय के विद्वान प्रधानाचार्य श्री समर बहादुर सिंह जी, सेवाश्रम इण्टर काॅलेज ढिंढुई, प्रतापगढ़ (उ0प्र0) का सादर आभार व्यक्त करूंगा, जिन्होंने अव्यक्त विधाओं से मुझे अनुपे्ररित किया। अल्पावधि में प्रकाशन हेतु तथा सुन्दर सजावट के लिए उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ (उ0प्र0) का ऋणी हूँ । पाठकों एवं विद्वज्जनों द्वारा उनके सुझावों एवं समीक्षा का सहृदय स्वागत करूंगा।