VARSHA

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
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ইবুক
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পৃষ্ঠা
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এই ইবুকখনৰ বিষয়ে

शान्ताबाईंची कविता मला आवडते; आणि मनापासून आवडते. तिच्यामध्ये जी सहजता आणि प्रसन्नता आहे, ती आजकालच्या इतर काव्यात क्वचितच पाहावयास मिळते तीमध्ये त्यांच्या मनातील अर्थ अगदी स्वच्छपणे प्रतिबिंबित झालेला असतो. तो समजावून घेण्यासाठी तिजबरोबर झटापट करावी लागत नाही. आजकालचा प्रतीकवाद आणि त्यामुळे निर्माण होणारे गूढगुंजन तीमध्ये मुळीच नाही. त्याचप्रमाणे आणखीही एक गोष्ट मला त्या कवितेमध्ये आवडली. ती अशी, की कवयित्रीच्या मनात वाचकाला काहीही शिकवावयाचे नाही. म्हणजेच कोणत्याही प्रकारचे प्रेषिताचे अवसान तिने आणलेले नाही. तिसरी समाधानाची गोष्ट अशी, की शान्ताबाईंना आपल्या कवितेमध्ये कोणत्याही प्रकारचा क्रांतिकारकत्वाचा अधिकार सांगावयाचा नाही, की वाचकाला धक्के देऊन त्याला जागृत करण्याची महत्त्वाकांक्षाही त्यांनी धरलेली नाही. आणखीही एका गोष्टीचा उल्लेख करावयाचा, म्हणजे मराठी वाङ्‌मयात डोकावू पाहणार्‍या विकट (Grotesque) पूजेचा या कवितेवर काहीही परिणाम अद्यापि झालेला नाही. या कवितेत मोकळा शृंगार पुष्कळच असला, तरी नव्याने येऊ पाहणारा लिंगसंप्रदाय तीमध्ये मुळीच नाही. आहे, तो केवळ, सरळ, शुद्ध, निरागस आत्माविष्कार !...

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