शिवाजी द्वारा १७ शताब्दी में आरंभ किए गए उस भाषाशुद्धि कार्य को स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर ने २० शताब्दी में आगे बढ़ाया । अंग्रेज़ों के शासन में राज व्यवहार एवं लोक व्यवहार में अरबी-फ़ारसी के साथ-साथ अंग्रेज़ी के शब्दों का भी वर्चस्व होने लगा था । वीर सावरकर जी ने अपनी पुस्तक “भाषाशुद्धि” में अनेक परकीय शब्दों के लिए संस्कृत शब्द का संग्रह किया । उन्होंने “television” जैसे नए यंत्रों के लिए “दूरदर्शन" जैसे संस्कृतनिष्ठ शब्द गढ़कर हिंदी भाषा को बदलते समय की आवश्यकताओं के लिए सिद्ध किया । सुपद्म की इस पुस्तक के दूसरे भाग में सावरकर जी के उस भाषाशुद्धि संग्रह का समकालीन हिंदी में रूपांतरण प्रस्तुत किया गया है ।
आशा है यह पुस्तक पाठकों में भाषा स्वराज की भावना को पुनः प्रज्वलित करेगी और इसके अध्ययन से जनमानस में हिंदी के शुद्धीकरण का कार्य प्रशस्त होगा ।