वे अकसर ऐसा करते हुए अनौपचारिक होते हैं और शुद्धता या कि व्याकरण आदि के दबाव से पूरी तरह से मुक्त होते हैं, क्योंकि इस डिजिटल संवाद के केंद्र में सिर्फ संप्रेषण होता है | अपने हिंदी प्रयोग में प्रयोक्ता अंग्रेजी अथवा अन्य भाषाओं तथा अपनी मातृभाषा के शब्दों और रूपों का बेझिझक उपयोग करते देखे जाते हैं | नए-नए संक्षिप्ताक्षर आदि भी जढ़े और इस्तेमाल किए जा रहे हैं । इससे हिंदी के रूप और संरचना पर न केवल प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि वह क्रियोलीकरण की ओर बढ़ सकती है |
प्रस्तुत पुस्तक में नव मीडिया के इन्हीं दो रूपों फेसबुक और ट्विटर में प्रयुक्त हो रही हिंदी, उसमें होनेवाले बदलावों और उस पर पड़नेवाले प्रभावों के वास्तविक डेटा पर आधारित भाषिक विश्लेषण किया गया है | साथ ही इन दोनों नव माध्यमों के विकास पर भी आवश्यक प्रकाश डाला गया है | हिंदी भाषा के संदर्भ में यह अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण पहल है।सुधी पाठक/अध्येता अवश्य ही इसे उपयोगी पाएँगे |