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आज नोबल पुरस्कार के संबंध में कौन नहीं जानता! जी हाँ; दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार। नोबल पुरस्कार विश्व के महान् व सुविख्यात व्यक्ति अल्फ्रेड नोबल के नाम पर पड़ा। इसकी भी अपनी रोचक कहानी है। अल्फ्रेड नोबल को अपने जीवन में जितनी खुशियाँ यदा-कदा मिलीं; उनसे बहुत ज्यादा दु:ख उन्हें झेलने पड़े। उन्होंने बचपन में तरह-तरह की शारीरिक व मानसिक पीड़ाएँ झेलीं और पिता के दो बार दिवालिया होने के कारण भयंकर गरीबी और अन्य यंत्रणाएँ भी भुगतीं। वे अपने आविष्कारों में सफल रहे; पर जीवनसाथी पाने में असफल। उनके उद्योग फूलते-फलते रहे; पर पारिवारिक संसार उजाड़ ही रहा। दानवीर नोबल पर देशद्रोह का आरोप लगा और वे दर-बदर भी हुए। उनकी मृत्यु का समाचार गलती से उनकी मृत्यु से काफी पूर्व ही एक समाचार-पत्र में छप गया और इस क्रम में उनकी ऐसी छीछालेदर हुई थी कि वे न केवल जीवन से डरने लगे वरन् इस बात पर भी काँप उठते थे कि कहीं मृत्यु के बाद उनके शव की दुर्गति न हो। अपने अंतिम क्रियाकर्म का नया त्वरित उपाय भी उन्होंने अपने आविष्कारी मस्तिष्क द्वारा निकाल लिया था। पर क्या दुर्गति रुक पाई। आखिर कैसे उनका व्यक्तित्व व कृतित्व उस फूल की तरह खिला; जो हर वर्ष अपने मोहक सौंदर्य व प्रेरक सुगंध से पूरे संसार को अपने आविष्कारी पथ पर तेजी से; निर्बाध रूप से लिये चल रहा है? आइए; पढ़ें अल्फ्रेड नोबल की जीवन-गाथा।
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