12 जनवरी, 1960 को जनमे विनोद कुमार मिश्र मात्र तीन वर्ष की आयु में पोलियोग्रस्त हो गए थे। 80 प्रतिशत विकलांगता के बावजूद वह आज कर्मठता के शिखर पर एक उदाहरण बन गए हैं। सन् 1983 में उन्होंने रुड़की विश्वविद्यालय (आईआईटी) से इलेक्ट्रॉनिक्स व दूरसंचार में डिग्री प्राप्त की और फिर एम.बी.ए. किया। अब तक उनकी 68 पुस्तकें व 400 से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं। ‘विकलांगता ः समस्याएँ व समाधान’, ‘विकलांग विभूतियों की जीवन-गाथाएँ’, ‘कमजोर तन, मजबूत मन’, ‘विकलांगों के लिए रोजगार’, ‘Eminent Disabled People of the World’, ‘Career Opportunities for the Disabled’, ‘विकलांगों के अधिकार’, ‘इक्कीसवीं सदी में विकलांगता’, ‘विकलांग स्वस्थ और आत्मनिर्भर कैसे बनें’, ‘थॉमस अल्वा एडिसन’, ‘अल्बर्ट आइंस्टाइन’, ‘सौर ऊर्जा’, ‘चार्ल्स डार्विन’, ‘लियोनार्दो द विंची’, ‘निकोलस कॉपरनिकस’, ‘सचित्र विज्ञान विश्वकोश’ (3 खंडों में) तथा ‘अल्फ्रेड नोबल’ आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। इन्होंने ‘भारत में विज्ञान और भारतीय वैज्ञानिक’, ‘साधारण आविष्कारों की असाधारण सफलताएँ’, ‘वैज्ञानिक भारत का निर्माण’ एवं ‘अक्षय ऊर्जा स्रोत’ जैसी विज्ञान संबंधी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ भी दी हैं। उन्हें ‘राष्ट्रपति पदक’, हिंदी अकादमी द्वारा ‘साहित्यिक कृति सम्मान’, योजना आयोग द्वारा ‘कौटिल्य पुरस्कार’ तथा ‘प्राकृतिक ऊर्जा पुरस्कार’ जैसे अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। संप्रति ः भारत सरकार के एक उद्यम में सहायक महाप्रबंधक।