इस पुस्तक को लिखने का मेरा उद्देश्य, मेरे प्यारे आर्यावर्त ही नहीं, अपितु संसार भर की युवा पीढ़ी, जो हमारा भविष्य है, को सृष्टि के प्रारम्भ से चले आ रहे तथा जिसको हमारे ऋषि मुनियों ने आविष्कृत किया एवं सुरक्षित रखा, उस वैदिक भौतिक विज्ञान से परिचय कराना है। इस पुस्तक को मैंने वेदविज्ञान-आलोक: ग्रन्थ, जो ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ - ऐतरेय ब्राह्मण (लगभग, सात हजार साल पुराना ग्रन्थ) का वैज्ञानिक भाष्य है तथा जिसे पूज्य गुरुवर आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक जी ने दस वर्षों के कठिन परिश्रम के पश्चात् लिखा है, के आधार पर लिखा है। इस ग्रन्थ का विषय सृष्टि उत्पत्ति है। इसमें प्रकृति अर्थात् सृष्टि की मूल अवस्था से लेकर तारों तक के बनने का विज्ञान है। प्राय: विद्यार्थी भौतिक विज्ञान पढऩे से डरते हैं, क्योंकि उनको गणित की जटिलताएँ कठिन प्रतीत होती हैं। इस कारण वर्तमान समय में गणित विद्या से विहीन छात्र, जो भले ही प्रतिभाशाली है और सृष्टि को समझने की उत्कट इच्छा रखते हैं, भौतिक विज्ञान नहीं पढ़ पाते। यह पाश्चात्य पद्धति का बहुत बड़ा दोष है। इधर हमारी वैदिक भौतिकी की इस पुस्तक को पढक़र गणित से अनजान परन्तु तर्क और प्रतिभा से युक्त छात्र भी सृष्टि को उस गहराई तक समझ सकते हैं, जहाँ तक पाश्चात्य भौतिकी को पहुँचने में सदियाँ लग सकती हैं।