Raakhi Ki Laaj: Bestseller Book by Vrindavan Lal Verma: Raakhi Ki Laaj

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सरदार : तिजोरी की चाबियाँ लाओ, जिसमें युगों से गरीबों को लूट-लूटकर सोना-चाँदी और जवाहिर इकट्ठा कर रक्खा है । अगर चिल्लाए तो गोली से अभी खोपड़ा चकनाचूर कर दूँगा ।

बालाराम : (काँपकर और घिग्घी बँधे हुए गले से) चाबियाँ! चाबियाँ मेरे पास नहीं हैं ।

सरदार : (भयानक स्वर मे) तब खोपड़ा खोला जाता है, तैयार हो जा ।

बालाराम : (भयभीत टूटे और बैठे स्वर मे) चंपी, बेटी चंपी, चाबियाँ दे दे । (चंपा अचकचाकर चादर हटाती है और आँखें मलती हुई बैठ जाती है। अपने पिता की ओर देखती है और घबराई हुई दृष्टि से एक बार सरदार की आकृति की ओर फिर मेघराज को देखती है मेघराज पर उसकी दृष्टि एक क्षण के लिए ठहरती है? उसकी कलार्ड़ पर राखी बँधी हुई है चंपा के दृष्टिपात करते ही मेघराज हिल जाता है)

मेघराज : ओफ! बहिन ओह!!

सरदार : (कड़ककर) क्या?

मेघराज : कुछ नहीं! चलिए यहाँ से । आप गलत घर में आए हैं । चलिए शीघ्र छोड़िए इस जगह को ।

चंपा : (केंद्रित ध्यान से उसके कंठ स्वर को पहचानकर: हाथ जोड़ती हुई) भैया! भैया-राखी की लाज! अपनी बहिन को बचाओ । भैया, तुम्हारे पाँव पड़ती हूँ ।

सरदार : (मेघराज से) तुम बाहर जाओ । (अपने साथी से) क्या देखते हो? बाँध लो, पकड़ो इस बेईमान को!

मेघराज : (दृढ़ और ऊँचे स्वर में) चलो, हटो यहाँ से । हटो, नहीं तो तुम्हारी छाती फूटती है ।

-इसी पुस्तक से

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About the author

मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर (झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति,' दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया । ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्‍त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्‍ट‌ि प्रदान की । उनकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने उन्हें ' पद‍्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया; आगरा विश्‍वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' उपन्यास पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्‍त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया । वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, रूसी, चेक, स्पेनिश एवं जर्मन भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।

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