Yeh Gaon Bikaau Hai

Diamond Pocket Books Pvt Ltd
Էլ. գիրք
183
Էջեր
Գնահատականները և կարծիքները չեն ստուգվում  Իմանալ ավելին

Այս էլ․ գրքի մասին

 एम.एम. चन्द्रा का यह तीसरा उपन्यास है। पिछले साल इनका लघु उपन्यास “प्रोस्तोर” प्रकाशित हुआ था जो 1990 के दशक के मजदूर आन्दोलन पर केंद्रित था। यह उपन्यास इण्डिया के उस भारत के गाँव की कहानी है जो आधुनिक विकास की बलि चढ़ जाता है। उसके बाद यह सिलसिला चला और यह नारा ‘यह गाँव बिकाऊ है’ बार-बार, कभी किसी राज्य से तो कभी किसी राज्य से आता रहा। 1990 के बाद जब नयी आर्थिक नीतियां पूरे देश में लागू हुयीं तब सबसे पहले मजदूर वर्ग को इसने अपना निशाना बनाया और फिर धीरे-धीरे किसानों को अपने चंगुल में फंसा लिया। जिससे निकलने की नाकाम कोशिश किसान करता रहा। किसानों के लिए सरकार ने जो रियायतें दीं, वे भी किसानों की जिन्दगी को बदहाल होने से न बचा सकीं। इसका नतीजा यह हुआ कि एक तरफ देश में किसानों की आत्महत्या का एक दौर शुरू हुआ तो दूसरी तरफ किसानों का अंतहीन आन्दोलन शुरू हुआ, जो आज तक जारी है। किसानों ने अपने हक के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी। दो दशक में सबसे ज्यादा यदि किसी ने संघर्ष किया है तो वो किसान ही थे। लेकिन उनके पक्ष में सिवाय आश्वासन के कुछ भी नहीं आया। आखिर क्यों? क्या किसान आन्दोलन में कमी थी या राजनीतिक पार्टियों में कमी थी या किसान आन्दोलन भटकाव का शिकार था? किसान आन्दोलन चलाने वाली जितनी भी धाराएं देश के अंदर मौजूद हैं। उनका प्रतिनिधि इस उपन्यास में आया है। चाहे वह संसदीय तरीके से किसानों की समस्या हल करना चाहता हो या गैर संसदीय तरीके से।

Հեղինակի մասին

 

Գնահատեք էլ․ գիրքը

Կարծիք հայտնեք։

Տեղեկություններ

Սմարթֆոններ և պլանշետներ
Տեղադրեք Google Play Գրքեր հավելվածը Android-ի և iPad/iPhone-ի համար։ Այն ավտոմատ համաժամացվում է ձեր հաշվի հետ և թույլ է տալիս կարդալ առցանց և անցանց ռեժիմներում:
Նոթբուքներ և համակարգիչներ
Դուք կարող եք լսել Google Play-ից գնված աուդիոգրքերը համակարգչի դիտարկիչով:
Գրքեր կարդալու սարքեր
Գրքերը E-ink տեխնոլոգիան աջակցող սարքերով (օր․՝ Kobo էլեկտրոնային ընթերցիչով) կարդալու համար ներբեռնեք ֆայլը և այն փոխանցեք ձեր սարք։ Մանրամասն ցուցումները կարող եք գտնել Օգնության կենտրոնում։