premsindhu me gota maar

· ojaswi books
3,0
23 водгукі
Электронная кніга
40
Старонкі
Ацэнкі і водгукі не спраўджаны  Даведацца больш

Пра гэту электронную кнігу

 

वास्तव में ,

वही धन्य है जिसके हृदय में प्रेमभाव उत्पन्न हो गया !

बिना रस के, जीवन सूखा, नीरस, मशीन-सा हो गया !

भगवत्प्रेम में स्वतंत्र सुख छुपा है -

जब चाहो-जहाँ चाहो,

कभी संयोग में, कभी वियोग में -

वह प्रेम कभी कम नहीं होता -

बल्कि बढ़ता ही जाता है |

भगवान रसमय हैं,

नित्य नूतन हैं, उनका

ध्यान, स्मरण, चिन्तन,

दर्शन आपके नीरस

जीवन को रसमय -

आनन्दमय बनाने

की ताकत रखता है |

"रसो वै स: |"

**********

जीवन को प्रेम से परिपूण कीजिए

**********

गरमी की लौ है द्वेष, परन्तु भगवद्प्रेम

बसंत का समीर है | त्याग तो प्रेम की

परीक्षा है और बलिदान प्रेम की कसौटी है |

प्रेम आँखों से कम और मन से ज्यादा

देखता है | सच्चे प्रेम में अपना

आप खो जाता है |

**********

प्रेम चुंबक है, खींचता है |

जहाँ प्रेम है, वहाँ परमात्मा है |

यह बलिदान और त्याग का पथ है,

हिसाब-किताब से दूर है |

प्रेम दिल को छूता है,

दिमाग को नहीं |

धन और वैभव हृदय की प्यास

नहीं बुझा सकते | निर्धन प्रेम हृदय

को आनंदित, उल्लासित,

आशावान और तृप्त

 करता है |

**********

प्रेम इस लोक का अमृत है |

प्रेम दु:ख और वेदना का साक्षी है |

 

जहाँ-जहाँ दुनिया में दु:ख

और वेदना का अथाह सागर है,

वहाँ प्रेम की अधिक

आवश्यकता है |

 

प्रेम जीवन का सर्वोतम

आनंद है |

 

सौभाग्य-दुर्भाग्य प्रेम के चरण

चूमते हैं | प्रेम स्वयं को अर्पित

करता है, इसे खरीदना-बेचना

असंभव है | प्रेम बिना तर्क के तर्क है |

प्रेम इस लोक का अमृत है |

प्रेम टेबल लैम्प नहीं कि

प्लग जोड़ा, स्वीच दबाया

और जल गया !

************

अपनी दोनों हथेलियों को

रगड़कर आग पैदा करनी

पड़ेगी तब जाकर प्रेम की

खीर पकती है |

*********

प्रेम थकान को मिटाना,

दुःख में सुख का

अहसास कराना है |

************

जीवन की वाटिका में प्रेम का

गुलाब खिलकर अपने चारों ओर

सुगन्ध बिखेरता है | 

**********

प्रेम भगवान का

सुन्दर वरदान है |

 

सच्चा प्रेम स्तुति से नहीं,

सेवा से प्रकट होता है |

सदा कष्ट सहता है,

न कभी झुंझलाता है

और ना ही कभी बदला लेता है |

 

प्रेम वियोग में मिलन की

तड़प को बढ़ाता है और

मिलन में बिछुड़ने की मधुर

वेदना का अनुभव कराता है |

***********

प्रेम दिलों को जोड़ता है |

परमात्मा प्रेम का भूखा है |

प्रेम सुन्दर सौन्दर्य है |

प्रेम ही सर्वोत्तम कानून है |

प्रेमयुक्त जीवन परिपूर्ण है |

***********

प्रेमी हृदय उदार होता है |

वह दया और क्षमा का सागर है | प्रेम अनन्त

शान्ति है | जिसके हृदय में प्राणीमात्र के लिये

प्रेम है उसका जीवन धन्य है | वह प्रेम के बल

पर अनन्त रस व आनन्द की नित्य नूतन

अनुभूति करता है |

**************

प्रेम ही परमात्मा है | प्रेम ही सबकी आत्मा है |

प्रेम ही सच्चा जीवन है |

प्रेम ही दिव्य रस है |

अतः अपने जीवन को प्रेम से परिपूर्ण करो |

************

जय हो

इस महाप्रेम की !

**********

बस केवल प्रेम |

केवल प्रेम

अनन्य प्रेम |

सरस प्रेम

सुन्दर प्रेम |

अनोखा प्रेम |

विलक्षण प्रेम

प्रेम ही प्रेम |

जीवन है प्रेम |

जीवनाधार है प्रेम  |

रस है प्रेम |

रसिका है प्रेम |

पूरण है प्रेम |

तृप्तिदायक है प्रेम |

परमात्मा है प्रेम |

प्रियतम को प्यारा है प्रेम |

बस, प्रेम ही प्रेम |

**************

प्रेम पाओ |

प्रेम में नाचो |

प्रेम में झूमो |

प्रेम रस का पान करो |

प्रेम प्याला पीओ |

प्रेम की मादकता का अनुभव करो |

प्रेम से हृदय को परिप्लावित करो |

प्रेम से देखो |

प्रेम से बोलो |

प्रेम में प्रेममय होकर

परम प्रेममय परमात्मा

को पाओ |

************

निर्मल है प्रेम |

निर्बोध है प्रेम |

नियमित है प्रेम | संगीत है प्रेम |

सरस है प्रेम | सर्वांग सुन्दर है

प्रेम | सुन्दरतम है प्रेम |

विलक्षण है प्रेम |

*************

जय हो, जय हो,

जय हो इस महाप्रेम की !

जय हो इस दिव्य प्रेम की !

जय हो मंगलमय प्रेम की ! जय हो

आनंदमय प्रेम की ! जय हो मधुर

रसमय प्रेम की !

************

जिसे प्राप्त करके किसी अन्य वस्तु के पाने की लालसा फिर बाकी नहीं बचती, जिसकी चाह से इस लालची दिल की सारी तमन्नाएं फिर सदा के लिए मिट जाती हैं ऐसे प्रेम की, ऐसे प्रेमी की, ऐसे प्रियतम की बारम्बार जय हो !जय हो ! जय हो !!!

************

प्रेम वाणी या भाषा का

विषय नहीं है यह तो

अनुभवगम्य वस्तु है | अनिवर्चनीय है |

देवर्षि नारदजी ने भक्ति सूत्र में कहा -

अनिवर्चनीयं प्रेमस्वरूपम् तथैव मूकास्वादनवत् |

जैसे गूंगे ने गुड़ खाया, कह न पाया

स्वाद कैसा ?

*************

प्रेम परमात्मा ही है |

इश्क खुदा है |

*****************

प्रेम का रूप गुणों से रहित है, कामनाओं से

रहित है, प्रतिक्षण बढ़ने वाला है, एकरस है,

अत्यंत सूक्ष्म है और अनुभवगम्य है |

*************

अकारण, एकांगी और एकरस अनुराग ही प्रामाणिक प्रेम है | ऐसा प्रेम स्वाभाविक स्वार्थ-विरहित, निश्चल, रसपूर्ण और विशुद्ध होता है | जैसे समुद्र में लहरें उठती हैं और उसी में लय हो जाती हैं, वैसे ही प्रेम में सर्वरस तथा सर्वभाव तरंगित होते रहते हैं |

***************

हे  री

मैं तो

प्रेम

दीवानी,

मेरो दर्द

न जाने कोई

सूली ऊपर सेज हमारी, सोनो किस बिध होई

गगन मंडल पर सेज पिया की

मिलनो किस विध होई

घायल की गत घायल जाने,

और ना जाने कोई

मीरा की प्रभु पीर मिटे जब बैद सावलियो होई

***************

वास्तव में, इस पराभूत, परिश्रान्त हृदय का विश्रान्त-स्थल एक प्रेम ही है |

आत्मा के अनुकूल केवल एक प्रेम ही है | आत्मा स्वत: प्रेमस्वरूप है | संसार में अत्यंत उज्जवल और अतिशय पवित्र प्रेम ही है और सब अनित्य है, प्रेम ही नित्य है, ध्रुव के समान अचल है | उसे हम अजर-अमर क्यों ना कहे ? जो रसरूप है, आनन्दघन है, वही प्रेम परमात्म-स्वरूप है |

पर ऐसा विशुद्ध प्रेम अत्यंत दुर्लभ है |

परमानुराग ही प्रेम है |

*****************

भक्ति रसामृत सिन्धु में लिखा है -

सम्य***मसृणितस्वान्तो ममत्वातिशया****तः |

भावः स एव सान्द्रात्मा बु****प्रेमा निगद्यते | |

 

जिससे हृदय अतिशय कोमल हो जाता है, जिससे अत्यन्त ममता उत्पन्न होती है, उसी भाव को बुद्धिमान जन परम प्रेम कहते हैं |

 

हृदय कोमल कैसे हो जाता है ?

प्रेम के लिए विश्व में ऐसी तो कौन-सी वस्तु है जो संभव न हो सके ! अरे, यह तो पत्थर को भी मोम जैसा मुलायम कर सकता है !

 

कठोर बर्फीले दिल को पानी की नाई बहाकर मानो अपने प्रियतम सागर से मिला देता है |

इसी की बदौलत बड़े-बड़े

संगदिल मोमदिल होते देखे गये हैं |

यही पहाड़ों की छातियों से झरने झरा रहा है

और यही चन्द्रकान्त मणियों को द्रवित कर रहा है |

अखिल विश्व में प्रेम का ही अखण्ड साम्राज्य है |

 

प्रेम 'अस्तित्व' है

और उसका अभाव - 'नास्तित्व' |

************

दीदार-ए-दिल से पूछ कि क्या मजा है दीदार का !

उन प्यासी आँखों से पूछ कि क्या नशा है तेरे नूर का !

**************

विधाता ने सर्वप्रथम अपनी सृष्टि में प्रेम को ही उत्पन्न किया और फिर उस प्रेम के ही निमित्त उस रचनाकार ने इस समस्त संसार की रचना की | उस सर्जनहार ने जब इस प्रेममय विश्व दर्पण में अपने 'प्रेमरूप' को देखा, तब उसे अपने आनन्द का अन्त न मिला | प्रेमरस ही प्रेमरस वहाँ लहरा रहा था |

***************

प्रेमी और प्रियतम के अनोखे प्रेम में दिल कह उठता है - "तुझसे छिपा ही क्या है, तू तो देख ही रहा है | मुझसे मेरा मालिक, मुझमें ही खेल रहा है |"

****************

मुझे वेद, पुराण, कुरान से क्या ?

मुझे सत्य का पाठ पढ़ा दे कोई | |

मुझे मंदिर, मस्जिद जाना नहीं |

मुझे प्रेम का रंग चढ़ा दे कोई | |

जहाँ ऊँच या नीच का भेद नहीं |

जहाँ जात या पात की बात नहीं | |

न हो मंदिर, मस्जिद, चर्च जहाँ |

न हो पूजा, नमाज में फर्क कहीं | |

जहाँ सत्य ही सार हो जीवन का |

रिधवार सिंगार हो त्याग जहाँ | |

जहाँ प्रेम ही प्रेम की सृष्टि मिले |

चलो नाव को ले चलें खे के वहाँ | |

**************

हे प्यारे ! तेरी अनोखी याद में,

जिन्दगी गुजर जाए |

तेरे इश्क के आनन्द में,

मेरी बन्दगी संवर जाए | |

प्रेम दीवाने जब भए,

मन भयो चकनाचूर |

पाँव धरे कित के किते,

हरि संभाल तब लेय | |

 

प्रेम बिना जो भक्ति है,

सो नित दंभ विचार |

उदर भरन के कारने

जनम गंवायो सार | |

 

भगवत्प्रेम बहुत ही ऊँची वस्तु है |

यह जिसे मिल जाये

वह सचमुच ही भाग्यवान है |

******************

सौ बार हमारा प्यार तुम्हें !

 

जहाँ तुम्हारे चरण वहाँ की,

पदरज मुझे बनाओ तुम |

एक बार तो निज चरणों से,

मोहे भी लिपटाओ तुम | |

भूलो तो सर्वस्व घड़ियाँ,

दर्शन प्यासी न भुलाओ तुम |

हृदय कमल कभी न मुरझे,

ऐसा उसे खिलाओ तुम |

निश्चित कोई मार्ग बनाकर,

मेरी ओर चले आओ तुम |

हृदयधन कितना तरसाओगे,

बस इतना-सा बतलाओ तुम | |

दूर बहुत, मजबूर बहुत,

क्या भेंट करूँ उपहार तुम्हें?

स्वीकार इसी को कर लेना,

सौ बार हमारा प्यार तुम्हें !

मधुर मिलन की हों घड़ियाँ,

दूरी और ना बनाओ तुम |

भूलो आँसू और दर्द में,

प्रीति ना भुलवाओ तुम | |

तुम्हें छोड़कर हे प्राणधन !

किसे सुनाऊँ बतलाओ तुम !

सुख शांति से जीवन के दिन,

शेष मो सम बिताओ तुम | |

संग हृदय पाश में बंध जाओ,

तस्वीर से बाहर आओ तुम |

इतना तो कर ही डालो,

मस्ती मो संग कर जाओ तुम | |

***************

मुझसे मेरा मालिक मुझमें ही खेल रहा है |

एक से दो और दो से एक...

एक से अनेक और अनेक से फिर एक...

ऐसा खेल खेलने की शक्ति

अगर किसी में है तो वह है प्रेम

जिसमें खेल और खिलाड़ी

दो नहीं बचते, एक हो जाते हैं |

**************

भक्ति की जितनी चर्चा हो उतना ही हमारा मंगल है क्योंकि भगवत्प्रेम की प्राप्ति के लिए भक्ति की सर्वप्रधान साधन है और साध्यरूप में भी वही भगवत्प्रेम है | आपके नीरस और भक्ति शून्य हृदय में नित्य नूतन रस का व भक्ति के दिव्यानंद का जो संचार कर दे, वही संत है, वही गुरु, वही सदगुरु है |

******************

महापातक युक्तो***पि ध्याय***मिषमच्युतम् |

पुनस्तपस्वी भवति प***क्ति पावनपावन: | |

महापातकी व्यक्ति भी यदि निमेषमात्र श्री भगवान का ध्यान करे तो वह पुन: पवित्र होकर पवित्र करनेवालों को भी पवित्र कर सकता है |

******************

भगवान के पवित्र नाम और गुणों का खूब प्रेम से स्मरण और कीर्तन करो - आपका कलुषित हृदय  पवित्र और रसमय होता जायेगा | शिशु की भांति सरल, सहज और निर्दोष हो जाओगे |

******************

सच्चे प्रेम से आप संकीर्तन करोगे तो आपके हृदय की सारी कालिमाएं मिट जायेंगी | प्रेमावेश के कारण शुद्ध और शांतिमय दिव्य भावों की उत्पत्ति होगी जो आपके जन्म व जीवन को सफल बना देगी |

*************

अनन्य प्रेम ही अमृत है |

वह सबसे अधिक मधुर है |

जिसे यह प्रेमामृत का पावन

प्रसाद मिल गया, वह धन्य हुआ,

अमर हुआ |

कर्म बन्धन युक्त जन्म मरण

के चक्कर से मुक्त हुआ...

सदा के लिए ...

****************

बिना प्रेम की भक्ति निर्जीव,

निश्चेष्ट, नीरस है |

भक्ति प्रेम स्वरूपा है |

अनन्य प्रेम युक्त भक्ति ही

भक्त को पार लगाती है |

***************

सब ओर से स्पृहा-इच्छा-तृष्णा-कामना-आसक्ति रहित होकर चित्तवृति उन्हीं में लग जाय, जगत् के सारे पदार्थों से हटकर, इस लोक व परलोक की सारी सुख-सामग्रियों से, यहाँ तक कि मोक्ष सुख से भी मन हटकर एकमात्र अपने प्रेमास्पद में लग जाये - ऐसा हो तब मिलता है वास्तविक परमानंद यही है - अनन्य प्रेम ! बस उन्हीं से मेरा प्रेम है, रहेगा | उनके सिवा और कुछ नहीं |

*************

प्रेमी और प्रेमास्पद की शाश्वत तार कभी टूट नहीं सकती, मिट नहीं सकती, छूट नहीं सकती | उनका अटल संयोग कोई तोड़ नहीं सकता | दुनिया की परवाह नहीं | वो मेरे हैं - कोई कुछ भी क्यों न कहे ! वो मेरे हैं, मेरे हैं, मेरे हैं -और हम उनके हैं | और क्या चाहिये ? हमे परवाह नहीं |

***************

 जिसके हृदय में ऐसा भगवत्प्रेम प्रगट हुआ वही महा सिद्ध हुआ | अमरता को [प्राप्त हुआ | मोक्षरूप सिद्धि भी जिसे नहीं चाहिये, वह परमसिद्ध नहीं तो क्या है ? गोपियाँ परमसिद्धयोगिनी हैं | तृप्त हैं, संतुष्ट हैं | उनकी ऐसी सिद्धि है कि अतृप्ति, असंतुष्टि भी उन्हें तृप्ति व संतुष्टि देती है |

************

प्रिय प्रियतम को, प्रिया प्रियतमा को पाकर अपने आपको सौभाग्यशाली मानते हैं | परम आनंद को सहज भोगते हैं | वो मिल गये फिर न हमे स्वर्ग चाहिये, न वैकुंठ, न चक्रवर्ती राज्य और न ही इन्द्र का पद - कुछ चाहिये ही नहीं - हमें तो बस वो ही चाहिये !

****************

हमारा मन अपूर्ण संसार से हट गया, विनाशी जग से किसने क्या पाया ? हमने तो पूर्ण प्रेमास्पद को पाकर परम तृप्ति का अनुभव किया व नित्य नवीन रस को पा रहे हैं | उन माधुर्याधिपति के रस को पी रहे हैं | हमारा मजा हम ही जानें !

***********

मेरा सब जल गया | तेरा ही तेरा रह गया !

तन भी तेरा, मन भी तेरा, धन भी तेरा, कुटुंब

तेरा | कबिला तेरा | जो जो मेरा, वो वो तेरा,

जो कुछ मेरा, वो सब तेरा | ना मेरा था, ना मेरा

है | सब तेरा था, सब तेरा है | तेरा सब कुछ...

हे प्रजापति ! हे प्राणेश्वर !

************

सर्वस्व न्यौछावर कर देने पर भी यदि

रतिभर प्रेम मिले तो सौदा सस्ता है !

**********

उन्होंने जैसे पागल ही कर दिया है |

उन्हीं को देखूँ, उन्हीं को सुनूँ, उन्हीं की बातें,

उन्हीं का चिन्तन, उन्हीं का दर्शन सुहाने लगा |

सुन्दर-सा मुखड़ा भाने लगा,

दिल को वहीं तड़पाने लगा | |

हे भगवान ! हे भगवान !!

वो ही रह रह आये याद !

भूल गये भोजन का स्वाद | |

******************

Ацэнкі і агляды

3,0
23 водгукі

Звесткі пра аўтара

 इस पुस्तक के लेखक 'narayan sai ' एक सामाजिक एवं आध्यात्मिक स्तर के लेखक है | उसीके साथ वे एक आध्यात्मिक गुरु भी है |  उनके द्वारा समाज उपयोगी अनेको किताबें लिखी गयी है | वे लेखन के साथ साथ मानव सेवा में सदैव संलग्न रहते है | समाज का मंगल कैसे हो इसी दृढ़ भावना के साथ वे लेखन करते है |

Ацаніце гэту электронную кнігу

Падзяліцеся сваімі меркаваннямі.

Чытанне інфармацыb

Смартфоны і планшэты
Усталюйце праграму "Кнігі Google Play" для Android і iPad/iPhone. Яна аўтаматычна сінхранізуецца з вашым уліковым запісам і дазваляе чытаць у інтэрнэце або па-за сеткай, дзе б вы ні былі.
Ноўтбукі і камп’ютары
У вэб-браўзеры камп’ютара можна слухаць аўдыякнігі, купленыя ў Google Play.
Электронныя кнiгi i iншыя прылады
Каб чытаць на такіх прыладах для электронных кніг, як, напрыклад, Kobo, трэба спампаваць файл і перанесці яго на сваю прыладу. Выканайце падрабязныя інструкцыі, прыведзеныя ў Даведачным цэнтры, каб перанесці файлы на прылады, якія падтрымліваюцца.