Ek D.M. Ki Diary: Bestseller Book by Mohanlal Ray: Ek D.M. Ki Diary

· Prabhat Prakashan
4.6
12 reviews
Ebook
240
Pages
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About this ebook

प्रस्तुत पुस्तक में एक सफल व्यक्ति की प्रकृति तथा क्षेत्रीय स्तर पर सरकारी व्यवस्थाओं पर रोशनी डाली गई है। इसमें कतिपय रोमांचकारी घटनाएँ हैं; कई दिलचस्प वारदातें हैं और कई रोचक दृष्टांत भी; जो आम और खास पाठकों को आकर्षित कर सकते हैं। वे लोग और वे अफसाने अनदेखी के लायक नहीं हैं।
इन घटनाओं के दृष्टांत सरकार और उच्चाधिकारियों के लिए आँकड़ों के रूप में उपयोगी होंगे; जिससे सारतत्त्व निकालकर वे अपने अनुदेशों में डालकर कार्यपालकों; दंडाधिकारियों एवं पुलिस पदाधिकारियों को उपयोगी दिशानिर्देश परिचालित कर सकते हैं। जिन अधिकारियों के कंधों पर विधिव्यवस्था का दायित्व सौंपा जाता है; उनके लिए इन घटनाओं के दृष्टांत सोपान के रूप में उपयोगी हो सकते हैं। लेखक का अनुभव और विश्वास है कि विधिव्यवस्था के कर्तव्यनिर्वाह में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी—यदि ध्यान से पढ़ा जाए एवं तदनुसार अमल किया जाए। अतीत की अवघट घटनाएँ सुनहरे भविष्य की प्रेरणास्रोत होती हैं।
आम पाठकों के लिए यह पुस्तक सामाजिक सद्भाव और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का रास्ता दिखलानेवाली है। कतिपय बातें रोमांचक घटनाओं से परिपूर्ण हैं। अस्तु; पढ़नेसुनने में मनोरंजक भी लगेंगी।

Ratings and reviews

4.6
12 reviews
laljit prasad Sinha
September 30, 2018
All-rounder, practically funny.
4 people found this review helpful
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Monu Kumar Sah
June 23, 2024
that my life line
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علي محمد مهد لي
March 31, 2024
نه مع زد ما
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About the author

Mohan Lal Roy

जन्म :5 अगस्त, 1948 को चंपारण (बिहार) के एक गाँव में।

शिक्षा :विज्ञान महाविद्यालय, पटना से।

कृतित्व :प्रशासनिक सेवा के अनेक स्तरों पर अनेक स्थानों पर, अनेक विभागों में सेवा कर अनेक रूपों में संव्यवहार करते हुए अपार अनुभव अर्जित किया।

प्रकाशन : ‘मकई के तीन बाल’, ‘कौशल्या’, ‘मछली का शिकार’, ‘तीसरी मुलाकात’, ‘तीन मुलाकातें’, ‘बुढ़ापे की शादी’, ‘सातवीं शादी’, ‘अनोखी शादी’, ‘लाठी कुँअर’, ‘स्वामीजी’, ‘जुएरी’, ‘भगमतिया’, ‘एक अनार तीन बीमार’, ‘जलपरी’, ‘विदनी’, ‘शुगिया’, ‘फरियादी’, ‘शुभकला’, ‘अधन्नी’, ‘अठन्नी’, ‘रामपति सिंह’, ‘रूपनारायण’, ‘चतुर्भुज’, ‘चोर’, ‘नयनी’, ‘भूख और आम’, ‘प्यार और दुनियादारी’, ‘कसक’ आदि रचनाएँ प्रकाशित होकर बहुप्रशंसित। एक सौ से अधिक लघुकथाएँ तथा कुछ कविताएँ भी प्रकाशित। मासिक पत्रिका ‘झारखंड प्रदीप’ में नियमित व्यंग्य-लेख एवं समाचार-पत्रों में लेख आदि प्रकाशित।

सेवा-निवृत्ति के बाद झारखंड उच्च न्यायालय में अधिवक्ता तथा 2009 में राज्य उपभोक्ता आयोग के सदस्य बने।

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