‘क्या करूँ क्या ना करूँ’ के दोराहे पर खड़ा अर्जुन, जब मोह में फँस चुका था तब उसे गीता का परम ज्ञान मिला। फिर वह न सिर्फ इस संसार रूपी लीला में विजयी हुआ बल्कि उसने मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य भी जान लिया।
आज के अर्जुन आप हैं जो रोज किसी न किसी समस्या रूपी युद्ध में घिर जाते हैं। लेकिन लीला में छिपी गीता में वह समझ है, जो आपसे सही समय पर, सही राह का चुनाव करवाती है। बस जरूरत है ज्ञान के इस महासागर में मनन की मथनी घुमाकर उससे अपनी गीता बाहर निकालने की। लीगीताला में आप परम प्रेम, आनंद, मौन से जीवन जीने की कला सीखेंगे। जिसमें आप जानेंगे कि
* जीवन की समस्याओं (युद्ध) को किस दृष्टिकोण से देखें?
* किसी भी परिस्थिति (दुविधा) में सही निर्णय कैसे लें?
* मन की कौन सी रूकावटें हमें सही निर्णय लेने से रोकती हैं, उन्हें कैसे दूर करें?
* अपने उचित कर्तव्यों को पहचानकर कैसे बिना तनाव के उनका निर्वाह करें?
* कर्म करने और अकर्मता का सही तरीका एवं समझ क्या है?
* कर्म से कैसे बंधन बनते हैं और इन बंधनों से कैसे निकला जा सकता है?
* मृत्यु क्या है, क्या मृत्योपरांत भी जीवन है।
* संसार में अपने सभी कर्तव्य करते हुए सुखी, शांत और आनंदित जीवन कैसे जीएँ, साथ ही ईश्वर को भी कैसे प्राप्त करें।
आपको गीता सुनानेे के लिए कृष्ण (अंदर) सदैव तत्पर हैं, उन्हें तो सिर्फ आपके अर्जुन बनने का इंतजार है। तो आइए, पढ़ें यह ग्रंथ जिसके पहले दो अध्याय आपकी सेवा में खुल रहे हैं।