जैसे-जैसे दिन बीतते जाते हैं, हम सोचते हैं कि यह काफी नहीं है। हम और संसाधन इकट्ठा करना चाहते हैं। सबसे ज्यादा जरूरी खुशी की सुरक्षा है। ज्यादातर शरीर एक जैसे होते हैं। सब भय, घृणा, हिंसा से दूर जाना चाहते हैं। हमें प्रकृति से सीखना चाहिए, बिना किसी चिंता के फोकस करना चाहिए अपनी कमियों पर। हम बेहतर के लायक हैं। खुशी हमारे दिमाग के अंदर सावधानी भरे विचार उत्पन्न करती है तो शरीर अपने आप हैप्पीनेस महसूस करता है। तब आप जान पाते हैं कि आप कौन हैं और आप क्या चाहते हैं? फिर आप प्रकृति से ज्यादा जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
सबसे जरूरी है यह समझना कि हमारा शरीर एक अवस्था है। कोई वस्तु नहीं है। यहाँ कोई संज्ञा नहीं है, सारी क्रियाएँ हैं। आपके विचार, आपके भाव आते और जाते हैं। ये एक सक्रियता है। आप अतीत, भविष्य को पकड़कर नहीं रख सकते। वर्तमान अनुभव की तरह है, जो आता है और जाता है। हम नहीं जानते कि हमने किसी निश्चित समय पर क्या किया? हमने यह भाषा, जिसे हम रोजमर्रा की जिंदगी में बोलते हैं, वह हमने कैसे सीखी? लेकिन हमने वह सीखी। हम वही याद रख सकते हैं, जहाँ हमें अटेंशन मिलती है और इमोशन सिग्निफिकेंश मिलते हैं।
ब्रह्मांड में तीन चीजों को कभी नष्ट नहीं किया जा सकता—आत्मा, प्रेम व जागरूकता को। आपको अपने अंदर वह जगह खोजनी होगी, जहाँ कुछ भी असंभव नहीं है। उनके साथ चलिए, जो सत्य खोज रहे हैं और उनसे दूर भागिए, जो यह सोचते हैं कि उन्होंने सत्य को खोज लिया है।