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‘पृथ्वीवर येणा-या युगारंभीच्या पहिल्या वसंत ऋतूच्या पाऊल-स्पर्शासारखी ती त्याला भासली.तिचं धडधडतं हृदय त्याच्या कानापाशी होतं...जगाच्या आरंभी सुरू झालेला ताल.काळाला स्पर्श करत सतत युगानुयुगे सनातनपणे चाललेला धिनतिक. या तालातूनच निर्माण झालेली सृष्टीची लयकारी...त्याला आदिताल सापडल्यासारखं वाटलं.’
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