राष्ट्र का गौरव जनता के आरोग्य पर अवलंबित है। सशक्त रहकर ही मानव अपना तथा देश का हित कर सकता है। तन्दुरुस्ती अर्थात् उत्साह, कार्य-क्षमता, यश, आनन्द और जीवन सांख्य ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष - इस जगत के चतुर्विध् कार्य-क्षेत्रों में पुरुषार्थ की सिद्ध हेतु सशक्त और कसा हुआ सुदृढ़ शरीर और निरोगी मन अनिवार्य साधन है।