इस पुस्तक में प्रस्तुत कवितायें समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, आडम्बरों, छूआ-छूत, भेद-भाव, नस्लवाद, धर्मान्धता, साम्प्रदायिकता का प्रबल विरोध कर नयी व्यवस्था के निमार्ण पर बल देती है। जिसमें ढोंग-पाखण्ड़, छूमन्तर तन्त्र-मन्त्र, काला-गोरा, छोटे-बड़े का अन्तर न होगा। बेगार प्रथा-बंधवा मजदूरी, बाल-श्रम, शोषण-दमन-अत्याचार और इसे समाप्त करने के लिए जनता को कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से चेताया।