EKA PANACHI KAHANI

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
৪.৪
১৩ টা পৰ্যালোচনা
ইবুক
316
পৃষ্ঠা
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এই ইবুকখনৰ বিষয়ে

खांडेकरांसारख्या प्रतिभावंत लेखकाची प्रांजळ आत्मकथा

"आत्मकथा ही शंभर टक्के सत्यकथा असावी, अशी सवा|ची अपेक्षा असते; पण सत्याला पौलू असतात-- आणि अनेकदा ते इतके परस्परविरोधी असतात, की सत्याचं पूर्ण दर्शन मोठमोठ्या व्यक्तींनाही होत नाही. सत्याला या जगात कळत, नकळत अनेकदा अर्धसत्याचं स्वरूप येत असतं. माणूस ज्या वेळी स्वत:विषयी बोलू लागतो, तेव्हा तो कितीही प्रामाणिकपणानं बोलत असला, तरी त्यातलं सत्य हे धुक्यातून दिसणार्या उन्हासारखं नकळत अंधूक होण्याचा संभव असतो. "अहंता ते साडावी' हे संतवचन लहानपणापासून कानी पडत असलं, तरी मनुष्याचा अहंकार सहसा त्याला सोडीत नाही-- सावलीसारखा तो त्याच्या पाठीशी उभा असतो. अहंगंड, आत्मपूजा, आत्मगौरव या गोष्टी तटस्थ दृष्टीला कितीही दोषस्पद वाटल्या, तरी त्या ज्याच्या त्याला कधीच तशा वाटत नाहीत. आत्मसंरक्षण हा जीवमात्राचा प्राथमिक धर्म आहे. त्या संरक्षणाची प्रेरक शक्ती अहंभाव ही आहे. त्यामुळं तत्त्वज्ञानानं कितीही उपदेश केला, संतांनी कितीही समजावून सांगितलं, तरी मनुष्याचा अहंभाव पूर्णपणे लोप पावणं जवळजवळ अशक्य आहे. ...पण पूर्ण सत्य सांगता आलं नाही, तरी मर्यादित सत्याला स्पर्श करण्याचा आपण प्रयत्न करावा, असं मला वाटू लागलं. जीवन व्यस्त (absurd) आहे, निरर्थक आहे, अर्थशून्य आहे, लहरी सृष्टीची अंध क्रीडा आहे, हे तत्त्वज्ञान कवटाळण्याकडे तरुण पिढीचा कल वळला असताना, आयुष्याचा आपण जो अन्वयार्थ लावला, तो मोकळेपणानं त्यांच्यासमोर मांडावा, या एकाच हेतूनं मी आत्मकहाणी लिहीत आहे. माझ्या पिढीतल्या सर्वसामान्य भारतीय मनुष्याचा एक प्रतिनिधी,एवढीच माझी ही कहाणी लिहीत असतना भूमिका आहे---''

‘Eka Panachi Kahani’ is an autobiography of Marathi literary legend V.S.Khandekar. Every truth has many aspects and many a times they are very much in contrast with each other. But Khandekar honestly describes his life from birth till marriage.

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