मुहल्ले भर घूमकर तीसरे पहर रासमणि घर लौट रहीं थीं। आगे-आगे उनकी पोती चल रही थी जिसकी उम्र कोई दस बारह साल की थी। गाँव का सँकरा रास्ता— जिसकी बगल की खूँटी में बँधा हुआ बकरी का बच्चा एक किनारे पड़ा हुआ सो रहा था। उस पर नजर पड़ते ही पोती को लक्ष्य कर वे चिल्ला पड़ीं, ‘अरी छोकरी, कहीं रस्सी मत लाँघ जाना!