जब-जब धर्म के ठेकेदारों ने समाज में यह भ्रांति फैलाई कि ईश्वर को प्रसन्न रखने का, उसे पाने का मार्ग बहुत कठिन है तब-तब स्वयं भगवान ने अपने ऐसे पारस भक्तों को पृथ्वी पर भेजा, जिन्होंने इस मिथक को खंडित कर दिया। साथ ही जन सामान्य को भक्ति का सहज, सरल पाठ पढ़ाया और उन्हें अपने संपर्क में लेकर सोने की तरह शुद्ध, निर्मल भक्त बना दिया।
उन्होंने संदेश फैलाया कि ‘ईश्वर को तो नाचते-गाते, आनंद से जीवन जीते, अपने दैनिक कार्य करते हुए, बस हरि बोलकर, सहजता से पाया जा सकता है। इसलिए धर्म या ईश्वर के नाम पर किसी के चक्कर में फँसने या कर्मकाण्ड में उलझने की बिलकुल ज़रूरत नहीं है। प्रेम से उसका नाम ले लिया तो समझिए वह आपका हो लिया।’
चैतन्य महाप्रभु सखी भाव धारण करनेवाले ऐसे ही महानतम वैष्णव भक्त थे, जिन्होंने बड़े-बड़े वेद-वाक्यों, अनुष्ठानों... आदि को एक सीधे, सरल मंत्र से बदल दिया। उनके मार्ग पर आज भी लाखों-करोड़ों भक्त चल रहे हैं एवं आनंद के साथ भक्ति की अभिव्यक्ति कर रहे हैं।
इस ग्रंथ द्वारा आप चैतन्य महाप्रभु की इसी आनंद लीला के साक्षी बन, भक्ति की विभिन्न अवस्थाओं को समझने जा रहे हैं। उनके पारस प्रभाव से आप भी सोना यानी सोने जैसा भक्त बन, भक्ति एवं आनंद की वर्षा से सराबोर हों, इसी शुभकामना के साथ यह ग्रंथ आपकी सेवा में प्रस्तुत है।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।