GITA SERIES: ADHYAY 18: MOKSHA GITA – ANTIM YUKTI SHUBHAKTI (HINDI EDITION)

· WOW PUBLISHINGS PVT LTD
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144
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About this ebook

विकारों से युद्ध का एलान-ए-जंग सबसे बड़ी कृपा स्वयं ‘कृपा’ हैगीता, श्रीकृष्ण ने अर्जुन के लिए कही मगर अर्जुन के बहाने हमें भी उस ज्ञानामृत को पीनेे का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जिसे श्रीकृष्ण ने अति गोपनीय बताया है। यह कृपा नहीं तो और क्या है कि बिना प्रयास के भी हम पर इस अद्भुत सर्वोच्च ज्ञान की वर्षा हुई। यदि कोई पूछे- ‘ईश्‍वर की सबसे बड़ी कृपा क्या है?’ तो इसका जवाब होगा- ‘सबसे बड़ी कृपा, स्वयं ‘कृपा’ है’, जो उन सभी पर हुई है, जिन्होंने गीता को पढ़ा, समझा, उस पर मनन कर जीवन में उतारा।

पुस्तक का प्रस्तुत भाग गीतांत यानी गीता का अंतिम अध्याय है, जिसमें श्रीकृष्ण ने पिछले 17 अध्यायों में दिए ज्ञान के विस्तार का सार दिया है। पूरी गीता को पढ़ने-समझने के बाद इस अध्याय का रिविज़न करने से आप समस्त गीता पर एक साथ मनन कर सकते हैं। इसमें निम्नलिखित बातों का पुनःस्मरण कराया गया है-

* संन्यास, त्याग, ज्ञान, भक्ति आदि क्या हैं?

* कर्म और कर्ता कौन है और कितने प्रकार के होते हैं?

* कर्म स्वभाव और वर्ण व्यवस्था का क्या रहस्य है, अपने स्वभाव अनुसार कर्म करना क्यों ज़रूरी है?

* सांख्ययोग में कैसे स्थापित हों?

* कर्मयोग का सार क्या है और उसे कैसे धारण करें?

* सच्चे भक्त के क्या गुण हैं?

* गीता ज्ञान पाने की पात्रता क्या है?

श्रीकृष्ण के मुख से निकले इन सभी ज्ञान वचनों को जीवन में धारण कर आइए, हम भी अर्जुन की तरह अपने अज्ञान का चोला उतारकर, सच्चे कर्मयोगी बनें और अपने विकारों से युद्ध का एलान करें, श्रीकृष्ण को अपना सारथी बनाते हुए। विजय आपकी होगी!


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About the author

सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।


उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।


सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’


सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।

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