सिद्धार्थ अपना महल छोड़कर जाने को तैयार था। जैसे ही वह अपनी पत्नी के महल से बाहर जाने के लिए मुड़ा, वैसे ही उसके कानों पर एक बालक के कोमल शब्द सुनाई पड़े, ‘कहाँ जा रहे हो?’
सिद्धार्थ हतप्रभ रह गया! उसने देखा कि उसका बेटा राहुल, जो अभी कुछ ही महीनों का था, उससे यह सवाल पूछ रहा था!
एकाएक राहुल की आवाज सुनकर सिद्धार्थ के होश का ठिकाना न रहा। वह दौड़कर अपने बेटे राहुल के पास पहुँच गया, उसने आश्चर्यभरी आवाज में राहुल से पूछा, ‘तुम... तुम तो अभी नन्हे बालक हो... फिर इतनी छोटी उम्र में तुम बोल कैसे पा रहे हो?’
छोटे बालक ने किलकारी मारते हुए जवाब दिया, ‘मैं तो आपके लिए बोल रहा हूँ।’
‘तुमने इतनी जल्दी बोलना कहाँ से और कैसे सीख लिया?’ सिद्धार्थ ने आश्चर्य जताते हुए पूछा।
‘वहीं से, जहाँ से आपने सीखा, वैसे ही जैसे आपने समझा।’
‘परंतु इतनी छोटी उम्र में बात कर पाना कैसे संभव है? यह तो मुझे किसी चमत्कार की तरह लग रहा है।’
राहुल ने कुछ क्षण मौन रहकर गंभीर आवाज में कहा, ‘मैं जानना चाहता हूँ कि आप मुझे इतनी छोटी उम्र में छोड़कर कहाँ और क्यों जा रहे हैं? क्या आप किसी उलझन में हैं? क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ?’
‘तुम... तुम तो अभी-अभी इस दुनिया में आये हो, तुम मेरी मदद कैसे कर सकते हो? तुम्हें तो इस दुनिया की कोई जानकारी भी नहीं है।’
‘मुझे अपनी समस्या बताकर तो देखिये... शायद मैं आपकी कुछ मदद कर पाऊँ...’
सिद्धार्थ के लिए राहुल का बोलना किसी अलौकिक घटना से कम न था। राहुल से जवाब सुनकर सिद्धार्थ के मन में, कुछ क्षण के लिए रुके हुए सवाल फिर से शुरू हो गये... मृत्यु क्या होती है? क्या मेरी भी मृत्यु होगी? क्या इस जीवन में मुझे मोक्ष मिल सकता है?... मृत्यु का महासत्य क्या है?... पृथ्वी पर आने का लक्ष्य, पृथ्वी-लक्ष्य क्या है?...
सिद्धार्थ को पता ही नहीं चला कि कब उसने अपनी कहानी, अपने बेटे राहुल के सामने बयान करनी शुरू कर दी।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।