संत ज्ञानेश्वर, स्वामी विवेकानन्द और भगवान बुद्ध इन तीन नामों से आज कौन परिचित नहीं है! इन महापुरुषों के जीवन चरित्र पर आज तक कई फिल्में बनाई गई हैं, कई पुस्तकें लिखी गई हैं। ‘3 संन्यासी’इस ग्रंथ में भी इनके जीवन चरित्र को एक साथ संजोने का प्रयास किया गया है। साथ ही इसमें संन्यासी जीवन पर प्रकाश डाला गया है।
आज तक यही माना गया है कि संन्यास यानी सांसारिक सुविधा के साधनों का त्याग कर, हिमालय पर एकांतवास में जीवनयापन करना। लेकिन इन तीनों संन्यासियों ने संन्यास की इस परिभाषा को ही बदल दिया। इन्होंने संसार में रहकर ही लोगों को उच्चतम मार्गदर्शन देकर, निःस्वार्थ जीवन जीने का सबक सिखाया।
तीनों संन्यासियों ने अपने जीवन काल में लोगों को अमूल्य शिक्षाएँ दीं। अपने-अपने समय में इन्होंने लोगों को संसार की गहरी मान्यताओं से मुक्त करके, जीवन का असली लक्ष्य पाने की प्रेरणा दी। इस ग्रंथ द्वारा यही बोध प्राप्त होता है कि संन्यासी बनने के लिए संसार का त्याग करना जरूरी नहीं है बल्कि संसार में रहकर ही संन्यासी जीवन जी सकते हैं।
आध्यात्मिक राह पर चलनेवाले हर खोजी के लिए यह ग्रंथ एक प्रेरणास्रोत है। अगर आप सत्य प्राप्ति के लिए संन्यास लेना चाहते हैं तो आपको हिमालय पर या एकांतवास में जाने की आवश्यकता नहीं है। केवल ऐसे ग्रंथ पढ़ना ही पर्याप्त है, जो आपको सही रास्ता दिखाएगी और संसार में रहकर ही संन्यासी जीवन जीने की कला भी सिखाएगी।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।