Maharashtra Ke Teen Maha Sant: Naam Ek Ram

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परमात्मा तक पहुँचने का द्वार कहाँ है

तीन महा संतों के जीवन से स्थाई प्रसन्नता के रहस्य जानकर, मनुष्य जीवन और नाम को सार्थक कर, परमात्मा के द्वार तक पहुँचने में सफलता कैसे प्राप्त करें?

इस सवाल का जवाब बाहर नहीं, हर एक के अंदर ही है और बिलकुल सरल है- प्रसन्न रहकर।

“प्रसन्नता” का वास्तविक अर्थ है, सुखी और खुश होना; सकारात्मक भावना का अनुभव करना; अपने अंदर के आत्मविश्वास, ज्ञान, ध्यान पर लक्ष केंद्रित करना; इसी से इंसान अपने जीवन में उच्चतम अभिव्यक्ति करता है। जैसे संत नामदेव, संत एकनाथ और संत तुकाराम ने इस “प्रसन्नता” को प्राप्त कर, भक्ति की ऊँचाई पाई और इसे दूसरों में बाँटने का महान कार्य किया।

अध्यात्म में प्रसन्न रहने का बहुत महत्त्व है क्योंकि “प्रसन्नता” परमात्मा तक पहुँचने का द्वार है। संत परंपरा में सभी संतों द्वारा इसी बात को उजागर किया गया है इसलिए हर इंसान को प्रसन्न रहने के लिए, कुछ प्रश्नों द्वारा स्वयं की खोज करनी चाहिए। जैसे-

* संसार में रहते हुए ईश्वर भक्ति कैसे करें?

* सांसारिक विफलताओं, दुःखद घटनाओं को ‘ईश्वर का प्रसाद’ कैसे समझें?

* हकीकत में हम जो हैं, वही बनकर कैसे जीएँ?

* नि:स्वार्थ और परोपकारी जीवन का महत्त्व क्या है?

* संतों के कार्य, उनके उपदेश आज भी हमारे जीवन को कैसे परिवर्तित करते हैं?

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About the author

सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।


उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।


सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’


सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।


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