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गुलजारांचे बावनकशी त्रिवेणीकाव्य,त्याची नजाकत याचे शान्ताबाईंची मराठीत उतरवलेले अपूर्व शब्दशिल्प."त्रिवेणी'' हा गुलजारांनीच निर्माण केलेला कवितेचा नवा आकृतिबंध. कोणत्याही भारतीय भाषांतील कवितेत हा रचनाबंध नाही. ही त्यांची कवितेला देणगीच! या अल्पाक्षरी कवितेत पहिल्या दोन कवितापंक्तींचाच गंगायमुनेप्रमाणे संगम होऊन कविता पूर्ण होते. मात्र या दोन प्रवाहांखालून जी सरस्वती गुप्तपणे वाहते. ती ते अधोरेखित करतात, तिसर्या काव्यपंक्तीने. गुलजारांच्या कवितेतून प्रामुख्यानं भिडते ती त्यांच्या अंतरातील "खामोशी''. या "खामोशी''चं अंगभूत सामर्थ्य असं, की ती त्यांच्या अनुभूतींतूनच पूर्णत्वानं व्यक्त होते; त्यांची कविता यामुळेच मिताक्षरी व तरल आहे. कधी ती प्रिय व्यक्तीच्या हरवण्यानं व्याकूळ असते, तर कधी सामाजिक विसंगतींची खंत करते. सोबत असतं समृद्ध आकलनातून येणारं भाष्य आणि जगण्यातलं निखळ सत्य!
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