UKHADLELI ZADE

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
ଇବୁକ୍
200
ପୃଷ୍ଠାଗୁଡ଼ିକ
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ଏହି ଇବୁକ୍ ବିଷୟରେ

‘उखडलेली झाडे’ या संग्रहात आनंद यादवांची कथा विकासाच्या एका विशिष्ट टप्प्यावर भेटते.ग्रामीण भागातील वर्तमान वास्तवाचे, समाजमनाचे, शहर व खेडे यांच्या अनेकविध संबंधांचे यादवांचे भान इथे प्रखर आणि मर्मभेदी झालेले जाणवते.ग्रामीण भागात सुधारणांच्या हेतूने आलेले शिक्षण, उद्योगीकरण, विकास योजना, पाणी योजना, पंचायत परिषदा, ग्रामविकास, शेतीविकास इत्यादींचा ग्रामीण जीवनावर प्रत्यक्षात कसा विपरीत आणि विकृत परिणाम होत चालला आहे आणि त्यात सगळा अधस्तरीय ग्रामीण समाजच कसा पिळून, भरडून निघत आहे, कायमचा उखडला जात आहे, याचे अस्वस्थ करणारे अतिशय कलात्म दर्शन ते घडवीत आहेत.याचबरोबर एवूâण मराठी समाजातील जाती-वर्गांचे परस्पर संबंध, शहर आणि खेडे, बुद्धिजीवी मध्यमवर्ग यांचे सांस्कृतिक नातेही ते शोधू पाहत आहेत.त्यांचा हा संग्रह म्हणजे ‘वर्तमान मराठी खेड्यावरचे आणि त्या संदर्भात एवूâणच मराठी समाजावरचे प्रातिनिधिक भाष्य वाटावा, अशा योग्यतेचा आहे.

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