Pratyagat (Amar-Jyoti): Bestseller Book by Vrindavan Lal Verma: Pratyagat (Amar-Jyoti)

· Vr?ndavanalala Varma granthamala Book 21 · Prabhat Prakashan
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नवलबिहारी ने वहीं खड़े-खड़े कहा, ' इन पाजी लौंडों की यह हिम्मत! धर्म को गारत किया, अब अपने बडे-बूढ़ों के अपमान पर कमर कसी है । '

पंचपात्र छीनने के लिए नवलबिहारी मंगल के पास ऐसे स्थान पर आए जहाँ सोमवती या फूलरानी से उनकी मुठभेड़ नहीं हो सकती थी । मंगल से बोले, ' अपना नाश किया था, सो उसका तुमको यह प्रायश्चित्त करना पड़ा; अब सारे समाज का नाश करके कौन सा प्रायश्चित्त करोगे?'

मंगल ने कहा, ‘तुम्हारे सरीखे संसार डुबोइयों की अकल अगर मैंने ठीक कर दी तो हमारे समाज का बेड़ा पार है । '

एक युवक ने बड़ी बेतकल्लुफी के साथ कहा. ' पंडितजी, क्यों चाँय-चाँय मचाए हुए हो? भाई के हाथ का चरणामृत बँट चुका, अब जरा अपनी बहिन के हाथ का भी पी लेने दो । '

नवलबिहारी की आँखों में खून आ गया । उनकी सहज सरल मुसकराहट तो जान पड़ता था मानो दीर्घकाल से लुप्त हो गई हो । आकृति बहुत भयानक हो उठी ।

लखपत ने उनको पकड़कर कहा, ' पंडितजी, यहाँ से चलिए । ये लोग बलवा करने के लिए आमादा हैं । मंदिर अपवित्र हो गया है । कल इसको शुद्ध करावेंगे ।

' एक लड़का ठहाका मारकर बोला, ' वाह रे भैया खूसट!'

पं. नवलबिहारी आग उगलनेवाली दृष्टि से इन सब पूजकों की ओर देखते जाते थे और उनको लखपत समेत उनके दो-तीन इष्ट मित्र बाहर घसीटे लिये जाते थे ।

-इसी पुस्तक से

About the author

मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत : उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया । ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्‍त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहास‌िक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्‍ट‌ि प्रदान की । आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पदम भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्‍‍वविद्यालय ने डी.लिट‍्. की मानद‍् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्‍त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया । वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी' का फिल्‍मांकन भी हो चुका है।

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