पंचपात्र छीनने के लिए नवलबिहारी मंगल के पास ऐसे स्थान पर आए जहाँ सोमवती या फूलरानी से उनकी मुठभेड़ नहीं हो सकती थी । मंगल से बोले, ' अपना नाश किया था, सो उसका तुमको यह प्रायश्चित्त करना पड़ा; अब सारे समाज का नाश करके कौन सा प्रायश्चित्त करोगे?'
मंगल ने कहा, ‘तुम्हारे सरीखे संसार डुबोइयों की अकल अगर मैंने ठीक कर दी तो हमारे समाज का बेड़ा पार है । '
एक युवक ने बड़ी बेतकल्लुफी के साथ कहा. ' पंडितजी, क्यों चाँय-चाँय मचाए हुए हो? भाई के हाथ का चरणामृत बँट चुका, अब जरा अपनी बहिन के हाथ का भी पी लेने दो । '
नवलबिहारी की आँखों में खून आ गया । उनकी सहज सरल मुसकराहट तो जान पड़ता था मानो दीर्घकाल से लुप्त हो गई हो । आकृति बहुत भयानक हो उठी ।
लखपत ने उनको पकड़कर कहा, ' पंडितजी, यहाँ से चलिए । ये लोग बलवा करने के लिए आमादा हैं । मंदिर अपवित्र हो गया है । कल इसको शुद्ध करावेंगे ।
' एक लड़का ठहाका मारकर बोला, ' वाह रे भैया खूसट!'
पं. नवलबिहारी आग उगलनेवाली दृष्टि से इन सब पूजकों की ओर देखते जाते थे और उनको लखपत समेत उनके दो-तीन इष्ट मित्र बाहर घसीटे लिये जाते थे ।
-इसी पुस्तक से