दु:ख में भी खुश क्यों और कैसे रहा जाए? इसी विषय पर आइना दिखाने के लिए सरश्री ने इस पुस्तक की रचना की है। पुस्तक में काल्पनिक पात्रों के आधार पर कहानी का निर्माण किया गया है। विषयवस्तु का प्रारंभ और अंत भी गुरु द्रोणाचार्य और शिष्य एकलव्य को आधार बनाकर पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया गया है। दो खण्डों में विभाजित इस पुस्तक द्वारा दु:ख में भी खुश रहने के दस उपायों पर विस्तार से चर्चा की गई है। लेखक सरश्री ने खुशी से खुशी पाने का राज पाठकों के सामने अत्यंत कुशलतापूर्वक सार्वजनिक किया है।
लेखक का यह उद्देश्य है कि पाठक खुश रहकर अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकें। इसलिए इस पुस्तक का अध्ययन पाठकों के जीवन में अप्रत्याशित बदलाव लाने में कारगर है। पुस्तक कलात्मक भाषा में रोचकता के साथ पाठकों को प्रभावित करनेवाली है।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।