राजा जनक की पुत्री जानकी...
भूमि से पैदा हुई भूमिजा...
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पतिव्रता सहचारिणी...
एक आदर्श बहू...
विनम्र, प्रकृति प्रेमी, सहनशील, ग्रहणशील, संवेदनशील, व्यवहारकुशल स्त्री।
लेकिन इन सबसे भी बढ़कर एक सीता जी वह हैं, जो हर भक्त की कहानी है।
देवी सीता के इस भक्तिमय जीवन को पहले एक रोचक कहानी के ज़रिए गहराई से समझते हैं।
कहानी है हंसिनी और सीप की। सीप जो समुद्र में मिलता है, जिसके अंदर मोती होता है। कहानी में हंसिनी और सीप दोनों ही अपने आपमें अनोखे हैं। वह ऐसे कि हंसिनी, परमहंस की पुत्री है और सीप में उड़ने की क्षमता है। वह आकाश में उड़ान भर सकता है। साधारणतया सीप उड़ते नहीं हैं, उनके पंख नहीं होते लेकिन इस सीप के पास अदृश्य पंख हैं। वह तेजस्वी है।
एक बार आकाश में विहार करते वक्त सीप किसी पेड़ पर जा बैठा, जहाँ उसकी मुलाकात हंसिनी से हुई। आपस में बातचीत करते हुए उन्हें महसूस हुआ कि उनके गुणों में काफी समानता है। आगे वे अकसर मिलने लगे।
धीरे-धीरे उनका आपसी तालमेल बढ़ता गया और उनकी मित्रता प्रगाढ़ होने लगी। वे एक-दूसरे को पसंद करने लगे।
एक दिन सीप ने हंसिनी से कहा, ‘आज मैं तुम्हारे सामने एक रहस्य खोलने जा रहा हूँ। मैं जो कह रहा हूँ, उसे ध्यान से सुनो।’ हंसिनी सुनने के लिए तैयार ही थी। सीप ने कहा, ‘जो मैं दिखता हूँ वह मैं नहीं हूँ। बाहर से मैं सीप दिखता हूँ मगर वास्तव में मैं मोती हूँ और मोती के माध्यम से ही सबसे बात करता हूँ, सीप तो मात्र मेरा बाह्यस्वरूप है।’
इस रहस्य के खुलने पर हंसिनी को आश्चर्य तो हुआ लेकिन उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वह तो सीप पर पहले से ही मोहित थी। हालाँकि वह समझ नहीं पाई कि यह मोती क्या है और सीप, मोती के माध्यम से कैसे बात करता है! फिलहाल उसने मन के एक कोने में मोती को रख दिया। उनकी मित्रता में कोई फर्क नहीं आया। वे दोनों घंटों बातें करते, ज्ञान चर्चाएँ करते, खुशी-खुशी रहने लगे। दिन आनंद पूर्वक बीतने लगे।
एक दिन हंसिनी ने सीप से कहा, ‘आज मेरा नृत्य करने को जी चाह रहा है, चलो हम मिलकर नृत्य करते हैं।’ लेकिन सीप के भीतर से मोती बोला, ‘तुम नृत्य करो, मैं तुम्हारे साथ नृत्य नहीं कर पाऊँगा। मेरी कुछ मर्यादाएँ हैं, जिन्हें मैं हर हाल में निभाता हूँ।’
हंसिनी सीप की भावना का आदर करते हुए चुप रही। वह नहीं चाहती थी कि सीप की मर्यादा टूटे। इसी तरह सीप भी नहीं चाहता था कि हंसिनी की नृत्य करने की इच्छा उसके कारण छूटे। सीप ने कहा, ‘तुम पूरी तरह आज़ाद हो, तुम जो चाहो वह कर सकती हो, हमारा संबंध तुम्हारी आज़ादी में बाधा नहीं है।’ इस तरह वे एक-दूसरे की इच्छाओं का आदर करते हुए मित्रता निभा रहे थे।
सीप में उड़ने का विशेष गुण था तो हंसिनी भी विलक्षण थी। उसके पास अनोखे पंख थे। उसने अपने पिता से बहुत सी ज्ञान की बातें सुनी थीं। कुछ को उसने आत्मसात किया था तो कुछ का वह अपनी जीवन यात्रा में अनुभव करती जा रही थी।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।