Netaji Ka D.N.A.: Bestseller Book by Vijay Kumar: Netaji Ka D.N.A.

· Prabhat Prakashan
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नेताजी का डी.एन.ए.

अगले दिन हम सुबह ही वर्माजी के घर जा पहुँचे। वहाँ बड़ी भीड़ थी। प्रायः सबके हाथ में कुछ कागज भी थे। किसी को गली की समस्या थी, तो किसी को बिजली के खंभे की। किसी को अपने या अपने किसी रिश्तेदार के लिए नौकरी चाहिए थी, तो किसी को दुकान। वर्माजी सबसे बड़ी चतुराई से निबट रहे थे।

कभी वे गरम हो जाते, तो कभी नरम। कभी किसी के साथ वे अंदर जाकर गुपचुप बात करते, तो किसी को सबके सामने हड़काने लगते। शर्माजी से उन्होंने चाय का आग्रह किया; पर मुझे पानी तक को नहीं पूछा। उनको बार-बार रंग बदलता देख मैं समझ गया कि जरूर इनके डी.एन.ए. में गिरगिट के कुछ अंश हैं।

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जरा सोचिए, अभी तो ‘मेरा भारत महान्’ विकासशील देश है; पर जब यह पूर्ण विकसित हो जाएगा, तब सड़क पर झाड़ू लगाते सफाईकर्मी, खेत में आधी धोती पहनकर हल चलाते किसान, फटी लँगोटीवाले भिखारी सब टाईवाले ही होंगे। घरों में झाड़ू-पोंछा करनेवाली महिलाएँ और गलियों में आवाज लगाकर फल-सब्जी बेचनेवाले इसे लगाकर आएँगे।

टाईवाले चालक के रिक्शा में बैठकर लगेगा मानो पूरा ब्रिटेन आपकी गुलामी कर रहा है। दूधवाला अपने साथ-साथ भैंस के गले में भी इसे लटका देगा। इससे दूध में पर्याप्त पानी होने पर भी दो-चार रुपए फालतू देते हुए आपको कष्ट नहीं होगा।

—इसी संग्रह से

वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक विद्रूपताओं पर करारा प्रहार करनेवाली चुटीली व्यंग्य रचनाओं का संकलन।

About the author

विजय कुमार जन्म : 1956। शिक्षा : एम.ए. (राजनीति शास्‍‍त्र)। आपातकाल में चार माह मेरठ कारावास में। 1980 से संघ के प्रचारक। 2000-2008 तक सहायक संपादक राष्‍ट्रधर्म (मासिक)। प्रकाशन : ‘सांस्कृतिक पहेलियाँ’, ‘दासबोध : एक अध्ययन’, ‘अपने परमपूजनीय सरसंघचालक’, ‘आओ खेलें खेल’, ‘सुनो कहानी माधव की’ (बाल चित्रकथा), ‘चूहे की चंपी’, ‘हर दिन पावन’, ‘हाथी का बुखार’ (सचित्र बालगीत), ‘कुरसी तू बड़भागिनी’ (राष्‍ट्रधर्म गौरव सम्मान प्राप्‍त व्यंग्य संग्रह) और ‘यह जीवन समर्पित है, समाज आराध्य हमारा जीवन दीप जले’। 500 से अधिक लेख, व्यंग्य, निबंध आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं तथा अतंरजाल पर प्रकाशित। पाञ्चजन्य में स्तंभ ‘प्रशांत वाणी’ तथा पाक्षिक स्तंभ ‘व्यंग्य बाण’। पर्यटन मंत्रालय की ‘सिंधु दर्शन स्मारिका’ में लेह-लद‍्दाख यात्रा-वर्णन। अनेक स्मारिकाओं तथा विशेषांकों के संकलन व संपादन में सहयोग। संप्रति : वि.हि.प. के प्रकाशन विभाग से संबद्ध एवं स्वतंत्र लेखन।

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