ABHISHEK

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
ইবুক
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পৃষ্ঠা
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এই ইবুকখনৰ বিষয়ে

१९४७ ते १९५९ या बारा वर्षांच्या कालखंडात विविध निमित्तांनी बडोदे, इंदूर, सातारा आणि मिरज या ठिकाणी श्री. वि. स. खांडेकरांनी दिलेल्या चार वाङ्मयीन भाषणांचा अंतर्भाव या पुस्तकात केला आहे.

त्यानंतरच्या काळात साहित्यक्षेत्रात कित्येक भूवंâप झाले, अनेक ज्वालामुखी जागृत झाले, पुष्कळ जुने लेखक मागे पडले, अगणित नवे साहित्यिक उदयाला आले. साहित्यविषयक समस्या बदलल्या. वाङ्मयीन मूल्ये व जीवनमूल्ये यांच्याकडे पाहण्याच्या दृष्टिकोनातही फरक पडला. तंत्र, आशय, आकृतिबंध, इत्यादी साहित्यशास्त्रातील शब्दांचे बाजारभाव बदलले.

संगृहीत केलेल्या या भाषणांत मात्र त्या विशिष्ट काळाला अनुसरून निरनिराळ्या साहित्यविषयक समस्यांचा विचार केला गेला आहे.

हे साहित्यविषयक चिंतन खुद्द श्री. खांडेकरांच्या लेखनातील गुणावगुणांची मीमांसा करण्याच्या दृष्टीने जसे टीकाकारांना उपयुक्त ठरेल, तसेच, मराठी वाङ्मयाच्या आज-उद्याच्या अभ्यासकांना या कालखंडाचे मूल्यमापन करण्याच्या दृष्टीनेही अत्यंत साहाय्यभूत ठरेल.

 

 

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