BAKULA

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
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Е-книга
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ती आपल्या प्रत्येक पत्राच्या घडीत एक नाजूकसं बकुळीचं फूल त्याला आठवणींमध्ये पाठवायची. तिचं पत्र आलं की, श्रीकांतच्या हृदयात एक अनामिक हुरहूर दाटून यायची. हातात ते बकुळीचं फूल घेऊन तो गोड आठवणींमधे रमून जायचा. जणूकाही आत्ता श्रीमतीच आपल्या अगदी निकट येऊन उभी राहिली आहे, असा त्याला भास व्हायचा. तिचं सौम्य वागणं, तिच्या आसपास दरवळणारा मंद सुगंध, तिच्या स्वभावातला तो साधेपणा आणि तिच्या डोळ्यांतून ओसंडून वाहणारं निर्मळ प्रेम. तिच्या व्यक्तिमत्त्वाला कुठेही अहंकाराचा स्पर्शसुद्धा नव्हता. तिच्या प्रत्येक पत्रातून येणारं एकेक फूल त्यानं जमा केलं होतं. एका छोट्याशा पिशवीत अशी कितीतरी फुलं जमा झाली होती. ती पिशवी रोज त्याच्या उशीखाली दडलेली असायची. प्रत्येक पत्र त्याच्याकरता एक नवी उमेद घेऊन यायचं. या बकुळीच्या फुलाची साथसंगत आपल्याला जन्मभर असणार आहे, ही उमेद! सुधा मूर्ती यांच्या वैशिष्ट्यपूर्ण शैलीतील भावपूर्ण कलाविष्कार!


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