—ऐसा लग रहा है, जैसे छत पर कोई चल रहा हो तो क्या हिम्मतराय ठीक कहता था?
—क्या कहता था हिम्मतराय?
—यही कि इस भवन में एक दु:खी आत्मा का साया है। प्रेम की मारी एक राजकुमारी ने इस भवन में आत्महत्या की थी। तभी से उसकी आत्मा यहाँ भटक रही है।
—तब तुमने यह मकान लिया ही क्यों?
—इसलिए पुष्पा, क्योंकि मैं इन बातों पर विश्वस नहीं करता। मैं जानता हूँ कि आत्मा के पाँव नहीं होते, वह चल नहीं सकती। ये सब भ्रान्तियाँ हैं, अंधविश्वास हैं।
—इसी संकलन से
मानव-मन के अनजाने भय और आत्महीनता से उपजे अंधविश्वासों के नागपाश में जकड़े और मुक्ति के लिए छटपटाते हमारे समाज की पीड़ा के अँधेरे आयामों का अनुदर्शन—
अंधविश्वास-विरोध के एकांकी