लगभग तीन वर्ष पूर्व मुझे एक स्थानीय कवि सम्मेलन में युवा कवि प्रशान्त दीक्षित की संत कबीर पर रचना सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। रचना और रचनाकार का प्रस्तुतिकरण मुझे उस सम्मेलन में सर्वश्रेष्ठ लगा मुझे और वहीं से मैंने यह अनुमान लगाया कि यह युवा कवि एक दिन अपना नाम अवश्य रोशन करेगा। इसके बाद ‘‘सत्य ही है ईश्वर प्रत्यक्ष, सत्य के पथ पर ही है जीत।’’ सत्य पर रचना सुनी। एक बार ‘प्रशान्त’ मेरे घर आया और मैंने इसकी कई रचानाएँ सुनी। छन्दों में काव्य रचना करने वाला यह युवा कवि मेरठ की पहचान बन चुका है। कन्या भ्रूण हत्या, जनसंख्या वृद्धि, महंगाई, बेरोजगारी, पर्यावरण, जल संरक्षण, प्रदूषण आदि समस्याओं पर कलम चलाने वाला कवि, भक्ति और श्रृंगार की इतनी श्रेष्ठ रचनाएं कर सकता है यह तो आप स्वयं ही ‘प्रशान्त-प्रसून’ पढ़कर जानेंगे। मैं अपनी ओर से व सभी साहित्यकारों की ओर से ‘प्रशान्त’ को व उनके पिता पं0 हरिनारायाण दीक्षित ‘हरि’ को बहुत-बहुत बधाइयाँ देता हूँ। तथा ‘प्रशान्त-प्रसून’ के प्रकाशन की शुभकामनायें देते हुए इस युवा कवि के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।