झिलमिल करता दीप जलाया
आशाओं का नवरूप जगाया
स्वप्नों का झिलमिल रूप सजाया
मन के कुछ अँधियारे कोने
कुछ काले कुछ बेरंग कोने
साँझ की थकी धूप अनमनी
तरुण चाँद की दुग्ध चाँदनी
सबकी थोड़ी आभा चुराकर
छोटी सी इक दुआ मिलाकर
मन की हर भय शंका हरकर
विश्वास की स्नेहिल बाती भरकर
साँझ से ही प्रतीक्षा की मोहक लौ संग
मन के विस्मृत प्रिय संसार सार संग
जग का हर दर्द कुछकुछ भूला सा
रात्रि के अँधियारे में खोयाखोया सा
जीवन की हर धूपछाँव संचित पौ बन
अस्थिर सुखदुःख की कंपित लौ बन
रात्रि की कालिमा में सबल उजास बन
सदा रहे जगमग दीप लघु खद्योत बन!!
—इसी पुस्तक से