GITA SERIES – ADHYAY 14&15: UTTAM GITA: SUSTI BHAGANE, GUNATEET AVASTHA PANE KI YUKTI (HINDI EDITION)

· WOW PUBLISHINGS PVT LTD
Ebook
120
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About this ebook

सबकी सोच से बड़ा होता है सत्यसदियों से इंसान सृष्टि के रहस्य को खोजने में लगा हुआ है। वह नहीं जानता कि सत्य हमेशा इंसान की सोच से बड़ा होता है। जैसे, हम सोचते हैं कि हमारे भीतर सत्वगुण, रजोगुण व तमोगुण पलते हैं। लेकिन सत्य यह है कि इन गुणों के कारण हम पलते हैं। प्रकृति के इन गुणों से सारी सृष्टि की रचना हुई है, जिसमें मनुष्य भी शामिल है। ये गुण ही मनुष्य को चलायमान करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में आप जानेंगे कि कैसे आप गुणातीत होकर सारे सूत्र अपने हाथ में लेकर, गुणों का आवश्यकतानुसार उपयोग करके उत्तम गीता (पुरुषोत्तम) प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात जहाँ से इस सृष्टि की रचना हुई उस अवस्था का अनुभव कर सकते हैं। इस पुस्तक में कदम दर कदम आप जानेंगे-

* रज, तम और सत किस तरह इंसान को बंधन में बाँधते हैं?

* इन तीन गुणों के गुण-दोष क्या हैं? इनका लाभ कैसे उठाएँ?

* ज़रूरत पड़ने पर इन तीनों को कैसे घटाना या बढ़ाना चाहिए?

* तीनों गुणों का अतिक्रमण करके गुणातीत अवस्था तक कैसे पहुँचे?

* पुरुषोत्तम, सबसे उत्तम कौन है?

* गुणातीत अवस्था से पुरुषोत्तम को तत्त्व से कैसे जानें?


About the author

सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।


उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।


सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’


सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।

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