मृत्यु का भय क्यों दिया गया है?
क्या मृत्यु ही जीवन का एक मात्र सत्य है?
क्या मृत्यु उपरांत जीवन है?
इन प्रश्नों से संबंधित विषय को शब्दों में समझाना कठिन है। कारण मृत्यु के पश्चात् मनुष्य के जीवन का आयाम ही बदल जाता है। उदाहरणस्वरूप- किसी अंधे को आप प्रकाश के विषय में कैसे समझा सकते हैं? आप उसे दूसरी इंद्रियों का संदर्भ देकर ही समझाने का प्रयास करेंगे। आप उसे बताएँगे कि जैसे आवाज कान से टकराती है तो हमें सुनाई देता है, वैसे ही द़ृश्य आँखों से टकराते हैं तो हमें देखने का अनुभव होता है। यह बात सुनकर शायद अंधा जिसे सुनाई तो देता है, अपने ज्ञान से कुछ बातें समझ पाए। उसी तरह इस पुस्तक द्वारा ‘मृत्यु उपरांत जीवन’ की वह समझ देने का प्रयास किया जा रहा है, जो वास्तव में शब्दों से परे है।
‘मृत्यु उपरांत जीवन’ का ज्ञान यदि आपके वर्तमान को बदलकर, इसे सुंदर और सकारात्मक बनाता है तो ही यह ज्ञान आपने समझा। अन्यथा ज्ञान के नाम पर आप किसी और कल्पना में भ्रमित हो गए हैं। यह ज्ञान केवल बुद्घि के भ्रम को दूर करने के लिए नहीं बल्कि जीवन रूपांतरण करने के लिए है। वरना अधूरा ज्ञान पाकर लोगों का भय और बढ़ जाता है। वास्तव में यह ज्ञान हर प्रकार के भय को दूर करने के लिए है।
मृत्यु प्रकृति द्वारा प्रदान की गई एक विधि है, जिसके द्वारा संसार की लीला को आगे बढ़ाया जा रहा है। इस विधि द्वारा मनुष्य अपनी तरंग बढ़ा पाता है तथा सूक्ष्म जगत में अभिव्यक्ति कर पाता है। वास्तविक स्थूल शरीर की मृत्यु, सूक्ष्म शरीर प्राप्त करने की एक विधि है मगर यह विधि ही लोगों के दु:ख का कारण बन गई। मनुष्य को पृथ्वी पर मृत्यु देखकर दु:खी नहीं होना चाहिए क्योंकि आगे की यात्रा इसी जीवन का विस्तार है।
हमारी भावनाओं के लिए समय और काल कोई मायने नहीं रखता, भावनाएँ सहजता से पृथ्वी जीवन से मृत्यु उपरांत जीवन में पहुँचती हैं। जब मनुष्य को यह बात स्पष्ट होगी तब वह अपनी दु:खद भावनाओं पर नियंत्रण रख पाएगा और अपने मृतक प्रियजनों के लिए सकारात्मक भावनाएँ रख पाएगा।
वर्तमान समय में लोग मृत्यु से संबंधित प्रथाओं का मूल लक्ष्य जानने की अपेक्षा, उनका सिर्फ अंधा अनुकरण करते हैं इसलिए इन प्रथाओं के पीछे की समझ लुप्त हो गई है। समय के साथ, मनन द्वारा इन प्रथाओं में परिवर्तन लाया जा सकता है। मृत्यु से संबंधित हर प्रथा के पीछे का वास्तविक लक्ष्य जानते हुए, नई प्रथाएँ बनाई जा सकती हैं, जो लोगों में मृत्यु की समझ उत्पन्न कर सकती है।
पृथ्वी जीवन से मृत्यु उपरांत जीवन में जाने के बाद सूक्ष्म शरीर (इंसान) को दो तरह का ज्ञान प्राप्त होता है। सबसे पहले उसे यह पता चलता है कि वह मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ है। फिर उसे नीचे लिखा हुआ दूसरा अहम रहस्य भी ज्ञात होता है।
मनुष्य जब अपने स्थूल शरीर को जलते अथवा दफन होते हुए देखता है तब उसके सामने दूसरा रहस्य खुलता है, ‘मैं वह शरीर नहीं था, जिसे मैं अपना होना मानता रहा।’
मृत्यु उपरांत जीवन में रचनात्मक कार्यों के अनेक अवसर हैं। प्रेम, सेवा और आनंद उत्सव मनाने के हजारों कारण हैं। वहाँ विचारों की गति इतनी तीव्र होती है कि मनुष्य की रचनात्मकता और निर्माण क्रियाएँ अपने आप विस्तारित होती हैं।
सूक्ष्म जगत में मनुष्य अपनी चेतना के स्तर तथा अलग-अलग तरंग के अनुसार उपखण्डों में जाता है। पृथ्वी पर इंसान की जैसी तैयारी होती है, वैसी तरंग अनुसार वह सूक्ष्म जगत में प्रवेश करता है। वहाँ पर किसी भी प्रकार का पक्षपात नहीं चलता।
मृत्यु उपरांत जीवन में धन की कोई भूमिका या महत्त्व नहीं है। मनुष्य वहाँ पेट और पेट्रोल से मुक्त होता है। पेट से मुक्ति यानी धन कमाने से मुक्ति। वहाँ एक जगह से, दूसरी जगह जाने के लिए वाहन की आवश्यकता नहीं होती इसलिए पेट्रोल से भी मुक्ति मिलती है। पेट का पेट्रोल है भोजन और वाहन का भोजन है पेट्रोल। इन दोनों से मुक्ति है ‘महाजीवन।’
मनुष्य पृथ्वी पर थोड़े समय के लिए आया है, यह बात वह भूल चुका है। मृत्यु की जानकारी प्राप्त होने के पश्चात मनुष्य मृत्यु उपरांत जीवन में जाने के लिए जो गुण विकसित करेगा, वे गुण उसके पृथ्वी के जीवन को भी सुंदर बनाएँगे।
गलत वृत्तियाँ, आदतें छूटने के पश्चात् ही जीवन का उच्चतम चुनाव हो सकता है। पृथ्वी पर यदि सभी लोगों को यह ज्ञात हो जाए कि हमारी आगे की यात्रा महाजीवन में होनेवाली है और वहाँ हमारी पृथ्वी की आदतें सहयोग नहीं करनेवाली हैं तो तुरंत उनके व्यवहार में परिवर्तन आ सकता है।
तो आइए, मृत्यु की सही समझ पाकर एक ऐसे जीवन की शुरुआत करें, जहाँ कोई मृत्यु नहीं है बल्कि ऐसा जीवन है, जो ‘महाजीवन’ कहलाता है...!
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।