शांतिभरे जीवन की अमर कहानी
विश्व में कुछ बालक ऐसे भी हुए हैं, जो हमें अनुभवी लोगों से ज़्यादा समझ दे सकते हैं। ऐसे ही एक महान बाल चरित्र हैं- बालक ध्रुव, जिसने अल्पायु में ही अपने महान चरित्र से इस संसार को भक्ति का अनमोल पाठ पढ़ाया। जीवन में मिली सफलता सेे उसने केवल जीत ही नहीं, महाजीत हासिल की और आनेवाले सैकड़ों बच्चों के लिए प्रेरणा बना। आइए, बाल-भक्त से सुनें जीना तो कैसे जीना-
– किसी भी दुःखद परिस्थिति को विकास की सीढ़ी कैसे बनाया जा सकता है?
– अपनी सीमित संभावनाओं को असीम बनाकर आगे कैसे बढ़ा जा सकता है?
– वह कौन सा तरीका है, जिसे अपनाकर हर हाल में सुख, संतुष्टि और शांतिभरा जीवन जीया जा सकता है?
– तटस्थ भाव क्या है, यह किस तरह भौतिक और आध्यात्मिक विकास करता है?
– सत्य पाने के लिए एक भक्त की दृढ़ता कैसी होनी चाहिए?
– कैसे सांसारिक आकर्षणों, प्रलोभनों से बचते हुए, अपने लक्ष्य पर अटल रहना चाहिए?
इस ग्रंथ में इन सवालों के जवाब तो मिलेंगे ही, साथ ही ऐसा ज्ञान भी मिलेगा, जिसे ग्रहण कर सफल, संतुष्ट, सुखी और आनंदित जीवन की समझ प्राप्त की जा सकती है।
प्रस्तुत ग्रंथ भक्ति के मार्ग पर चल पड़े ऐसे भक्त का दर्शन है, जिसने पिता की गोद से लेकर, परमेश्वर की गोद का सफर तय किया। जो आज भी अपनी रोशनी से संसार को रास्ता दिखा रहा है कि ‘अगर मैं यह कर सकता हूँ तो तुम क्यों नहीं?’
तो चलिए, इस ग्रंथ से सीखें भक्ति की शक्ति से, कैसे नीले गगन के तले, तारों की दुनिया में ईश्वर की खोज कर, अपने परम लक्ष्य (सेल्फ स्टेबिलाइजेशन) को प्राप्त करें।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।